आज का फरमान (मुखवाक, हिंदी में )
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आज का फरमान (मुखवाक
)
{श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर , तिथि:- 28.04.2021,
दिन बुधवार, पृष्ठ – 775 }
रागु सूही छंत महला ४ घरु ३
ੴ सतिगुर
प्रसादि ॥
आवहो संत जनहु गुण गावह गोविंद केरे राम ॥ गुरमुखि मिलि
रहीऐ घरि वाजहि सबद घनेरे राम ॥ सबद घनेरे हरि प्रभ तेरे तू करता सभ थाई ॥ अहिनिसि
जपी सदा सालाही साच सबदि लिव लाई ॥ अनदिनु सहजि रहै रंगि राता राम नामु रिद पूजा ॥
नानक गुरमुखि एकु पछाणै अवरु न जाणै दूजा ॥१॥ सभ महि रवि रहिआ सो प्रभु अंतरजामी
राम ॥ गुर सबदि रवै रवि रहिआ सो प्रभु मेरा सुआमी राम ॥ प्रभु मेरा सुआमी अंतरजामी
घटि घटि रविआ सोई ॥ गुरमति सचु पाईऐ सहजि समाईऐ तिसु बिनु अवरु न कोई ॥ सहजे गुण
गावा जे प्रभ भावा आपे लए मिलाए ॥ नानक सो प्रभु सबदे जापै अहिनिसि नामु धिआए ॥२॥
इहु जगो दुतरु मनमुखु पारि न पाई राम ॥ अंतरे हउमै ममता कामु क्रोधु चतुराई राम ॥
अंतरि चतुराई थाइ न पाई बिरथा जनमु गवाइआ ॥ जम मगि दुखु पावै चोटा खावै अंति गइआ
पछुताइआ ॥ बिनु नावै को बेली नाही पुतु कुट्मबु सुतु भाई ॥ नानक माइआ मोहु पसारा
आगै साथि न जाई ॥३॥ हउ पूछउ अपना सतिगुरु दाता किन बिधि दुतरु तरीऐ राम ॥ सतिगुर
भाइ चलहु जीवतिआ इव मरीऐ राम ॥ जीवतिआ मरीऐ भउजलु तरीऐ गुरमुखि नामि समावै ॥ पूरा
पुरखु पाइआ वडभागी सचि नामि लिव लावै ॥ मति परगासु भई मनु मानिआ राम नामि वडिआई ॥
नानक प्रभु पाइआ सबदि मिलाइआ जोती जोति मिलाई ॥४॥१॥४॥
व्याख्या (अर्थ):-
रागु सूही छंत महला ४ घरु ३
ੴ सतिगुर
प्रसादि ॥
हे संत जनो! आओ, (साधु-संगत में मिल के) परमात्मा के
गुण गाते रहें। (हे संत जनों!) गुरु की शरण पड़ कर (प्रभु चरणों में) जुड़े रहना
चाहिए (प्रभु चरणों में जुड़ने की इनायत से) हृदय-घर में प्रभु की महिमा के शब्द
अपना प्रभाव डाले रखते हैं। हे प्रभु! (ज्यों-ज्यों) तेरी महिमा के शब्द (मनुष्य
के हृदय में) प्रभाव डालते हैं,
(त्यों-त्यों तू, हे प्रभु!) उसको हर जगह बसता दिखाई देता है। (हे प्रभु!
मेरे ऊपर भी मेहर कर) मैं दिन-रात तेरा नाम जपता रहूँ, मैं सदा तेरी महिमा करता रहूँ, मैं तेरी सदा महिमा में तवज्जो जोड़े रखूँ। हे नानक! जो
मनुष्य परमात्मा के नाम को अपने हृदय की पूजा बनाता है (भाव, हर वक्त हृदय में बसाए रखता है) वह मनुष्य हर समय आत्मिक
अडोलता में टिका रहता है, वह मनुष्य परमात्मा के प्रेम-रंग में रंगा रहता है। गुरु की
शरण पड़ कर वह एक प्रभु के साथ ही सांझ डाले रखता है, किसी और दूसरे के साथ सांझ नहीं
डालता।1। हे भाई! वह परमात्मा हरेक के दिल की जानने वाला है, और सब जीवों में व्यापक है। (पर जो मनुष्य) गुरु के शब्द के
द्वारा (उसको) स्मरण करता है,
उसको ही वह मालिक प्रभु (सब जगह) व्यापक दिखाई देता है। (उस
मनुष्य को ये निश्चय हो जाता है कि कहीं भी) उस परमात्मा के बिना और कोई नहीं। हे
भाई! (प्रभु की अपनी ही मेहर से) अगर मैं उस प्रभु को अच्छा लग पड़ूँ, तो आत्मिक अडोलता में टिक के मैं उसके गुण गा सकता हूँ, वह खुद ही (जीव को अपने साथ) मिलाता है। हे नानक! गुरु के
शब्द के द्वारा ही उस प्रभु के साथ गहरी सांझ पड़ सकती है (जो मनुष्य शब्द में)
जुड़ता है, (वह) दिन-रात परमात्मा का नाम स्मरण करता रहता है।2। हे भाई!
ये जगत (एक ऐसा समुंदर है, जिससे) पार लांघना मुश्किल है। अपने मन के पीछे चलने वाला
मनुष्य (इसके) दूसरे छोर पर नहीं पहुँच सकता, (क्योंकि उसके) अंदर ही अहंकार, अस्लियत की लालसा, काम, क्रोध चतुराई (आदि बुराईयाँ) टिकी
रहती हैं। हे भाई! (जिस मनुष्य के) अंदर अपनी समझदारी का मान टिका रहता है वह
मनुष्य (प्रभु के दर पर) स्वीकार नहीं होता, वह अपना मानव जन्म व्यर्थ गवा लेता
है। (वह मनुष्य सारी उम्र) जमराज के रास्ते पर चलता है, दुख सहता है (आत्मिक मौत की) चोटें खाता रहता है, अंत के समय यहाँ से हाथ मलता जाता है। हे भाई! (जीवन-यात्रा
में यहाँ) पुत्र, परिवार,
भाई - इनमें से कोई भी मददगार नहीं, परमात्मा के नाम के बिना कोई बेली नहीं बनता। हे नानक! ये
सारा माया के मोह का पसारा (ही) है, परलोक में (भी मनुष्य के) साथ नहीं
जाता।3। हे भाई! (जब) मैं (नाम की) दाति देने वाले अपने गुरु को पूछता हूँ कि ये
दुष्तर संसार-समुंदर कैसे पार लांघा जा सकता है (तो आगे से उक्तर मिलता है कि)
गुरु की रजा में (जीवन की चाल) चलते रहो, इस तरह दुनिया की मेहनत-कमाई करते
हुए ही विकारों से बचे रहा जा सकता है। (गुरु की रजा में चलने से) दुनिया के काम
करते हुए ही विकारों की ओर से मृतक रहा जाता है, संसार-समुंदर से पार लांघा जाता
है। (क्योंकि) जो मनुष्य गुरु के सन्मुख रहता है, वह परमात्मा के नाम में लीन रहता
है उसको बड़े-भाग्यों से सारे गुणों से भरपूर प्रभु मिल जाता है, सदा स्थिर हरि नाम में वह तवज्जो जोड़े रखता है। उसकी मति
में आत्मिक जीवन की सूझ का प्रकाश हो जाता है, उसका मन नाम में पतीज जाता है, उसको नाम की इनायत से (लोक-परलोक में) इज्जत मिल जाती है।
हे नानक! जो मनुष्य गुरु के शब्द में जुड़ता है उसे प्रभु मिल जाता है, उसकी जीवात्मा प्रभु की ज्योति में एक-मेक हुई रहती
है।4।1।4।
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वाहेगुरु
जी का खालसा
वाहेगुरु
जी की फतेह ॥
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