आज का फरमान (मुखवाक, हिंदी में )
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आज का फरमान (मुखवाक
)
{श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर , तिथि:- 03.04.2021,
दिन शनिवार, पृष्ठ – 653 }
सलोकु मः ४ ॥
गुरमुखि अंतरि सांति है मनि तनि नामि समाइ ॥ नामो चितवै
नामु पड़ै नामि रहै लिव लाइ ॥ नामु पदारथु पाइआ चिंता गई बिलाइ ॥ सतिगुरि मिलिऐ
नामु ऊपजै तिसना भुख सभ जाइ ॥ नानक नामे रतिआ नामो पलै पाइ ॥१॥ मः ४ ॥ सतिगुर पुरखि जि
मारिआ भ्रमि भ्रमिआ घरु छोडि गइआ ॥ ओसु पिछै वजै फकड़ी मुहु काला आगै भइआ ॥ ओसु
अरलु बरलु मुहहु निकलै नित झगू सुटदा मुआ ॥ किआ होवै किसै ही दै कीतै जां धुरि
किरतु ओस दा एहो जेहा पइआ ॥ जिथै ओहु जाइ तिथै ओहु झूठा कूड़ु बोले किसै न भावै ॥
वेखहु भाई वडिआई हरि संतहु सुआमी अपुने की जैसा कोई करै तैसा कोई पावै ॥ एहु ब्रहम
बीचारु होवै दरि साचै अगो दे जनु नानकु आखि सुणावै ॥२॥ पउड़ी ॥ गुरि सचै बधा
थेहु रखवाले गुरि दिते ॥ पूरन होई आस गुर चरणी मन रते ॥ गुरि क्रिपालि बेअंति
अवगुण सभि हते ॥ गुरि अपणी किरपा धारि अपणे करि लिते ॥ नानक सद बलिहार जिसु गुर के
गुण इते ॥२७॥
व्याख्या (अर्थ ):-
अगर मनुष्य
सतिगुरु के सन्मुख है उसके अंदर ठंढ है और वह मन से तन से नाम में लीन रहता है, वह नाम ही चितवता
है, नाम ही पढ़ता है और नाम में ही तवज्जो जोड़े रखता है, नाम (रूपी) सुंदर
वस्तु पा के उसकी चिंताएं दूर हो जाती है। यदि गुरु मिल जाए तो नाम (हृदय में)
अंकुरित होता है, तृष्णा दूर हो जाती है (माया की) सारी भूख दूर
हो जाती है। हे नानक! नाम में रंगे जाने के कारण नाम ही (हृदय रूप) पल्ले में उकर
जाता है।1। जिस मनुष्य को गुरु परमेश्वर ने मारा है (भाव, जिसे रब के राह
से बिल्कुल ही नफ़रत है) वह भ्रम में भटकता हुआ अपने ठिकाने से हिल जाता है। उसके
पीछे लोग डुग्गी बजाते हैं और आगे (जहाँ भी जाता है) मुँह कालिख कमाता है। उसके
मुँह से निरी बकवास ही निकलती है और वह सदा निंदा करके दुखी होता रहता है। किसी के
करने से कुछ होने वाला नहीं है (भाव, कोई उसे
सद्बुद्धि नहीं दे सकता), क्योंकि धुर से ही (किए बुरे कर्मों के
संस्कारों के तहत अब भी) ऐसी ही (भाव, निंदनीय) कमाई
करनी पड़ रही है। वह (मनमुख) जहाँ भी जाता है वहीं झूठा होता है, झूठ बोलता है और
किसी को अच्छा नहीं लगता। हे संत जनो! प्यारे मालिक प्रभु की महिमा देखो, कि जैसी कोई कमाई
करता है, वैसा ही उसे फल मिलता है। ये सच्ची विचार सच्ची दरगाह में
होती है, दास नानक पहले ही तुम्हें ये कह के सुना रहा है (ताकि भले
बीज बीज के भले फल की आशा की जा सके)।2। सच्चे सतिगुरु
ने (सत्संग रूप) गाँव बसाया है, (उस गाँव के लिए सत्संगी)
रखवाले भी सतिगुरु ने ही दिए हैं, जिनके मन गुरु के चरणों में जुड़े हैं, उनकी आस पूरी हो
गई है (भाव, तृष्णा मिट गई है); दयालु और बेअंत
गुरु ने उनके सारे पाप नाश कर दिए हैं; अपनी मेहर करके
सतिगुरु ने उनको अपना बना लिया है। हे नानक! मैं सदा उस सतिगुरु से सदके हूँ, जिसमें इतने गुण
हैं।27।
वाहेगुरु जी का
खालसा
वाहेगुरु जी की
फतेह ॥
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