आज का फरमान (मुखवाक )
{श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर , तिथि:- 12.03.2021,
दिन शुक्रवार, पृष्ठ – 767 }
रागु सूही छंत महला ३ घरु २
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
सुख सोहिलड़ा हरि धिआवहु ॥
गुरमुखि हरि फलु पावहु ॥ गुरमुखि फलु पावहु हरि नामु धिआवहु जनम जनम के दूख निवारे
॥ बलिहारी गुर अपणे विटहु जिनि कारज सभि सवारे ॥ हरि प्रभु क्रिपा करे हरि जापहु
सुख फल हरि जन पावहु ॥ नानकु कहै सुणहु जन भाई सुख सोहिलड़ा हरि धिआवहु ॥१॥ सुणि
हरि गुण भीने सहजि सुभाए ॥ गुरमति सहजे नामु धिआए ॥ जिन कउ धुरि लिखिआ तिन गुरु
मिलिआ तिन जनम मरण भउ भागा ॥ अंदरहु दुरमति दूजी खोई सो जनु हरि लिव लागा ॥ जिन कउ
क्रिपा कीनी मेरै सुआमी तिन अनदिनु हरि गुण गाए ॥ सुणि मन भीने सहजि सुभाए ॥२॥ जुग
महि राम नामु निसतारा ॥ गुर ते उपजै सबदु वीचारा ॥ गुर सबदु वीचारा राम नामु पिआरा
जिसु किरपा करे सु पाए ॥ सहजे गुण गावै दिनु राती किलविख सभि गवाए ॥ सभु को तेरा
तू सभना का हउ तेरा तू हमारा ॥ जुग महि राम नामु निसतारा ॥३॥ साजन आइ वुठे घर माही
॥ हरि गुण गावहि त्रिपति अघाही ॥ हरि गुण गाइ सदा त्रिपतासी फिरि भूख न लागै आए ॥
दह दिसि पूज होवै हरि जन की जो हरि हरि नामु धिआए ॥ नानक हरि आपे जोड़ि विछोड़े हरि
बिनु को दूजा नाही ॥ साजन आइ वुठे घर माही ॥४॥१॥
व्याख्या (अर्थ ) :-
रागु सूही छंत महला ३ घरु २
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
हे भाई जनो! आत्मिक आनंद देने वाले प्रभु की महिमा के गीत
गाया करो। गुरु की शरण पड़ कर (महिमा के गीत गाने से) परमात्मा के दर से (इसका) फल
प्राप्त करोगे। हे भाई! गुरु की शरण पड़ कर परमात्मा का नाम स्मरण किया करो, (इसका) फल हासिल करोगे, परमात्मा का नाम अनेक जन्मों के दुख
दूर कर देता है। जिस गुरु ने तुम्हारे (लोक-परलोक के) सारे काम सवार दिए हैं, उस अपने गुरु से सदके जाओ। हे भाई!
परमात्मा का नाम जपा करो। हरि प्रभु कृपा करेगा, (उसके
दर से) आत्मिक आनंद का फल प्राप्त कर लोगे। नानक कहता है: हे भाई जनो! आत्मिक आनंद
देने वाले प्रभु की महिमा के गीत गाते रहा करो।1। हे भाई! परमात्मा की महिमा सुन
के आत्मिक अडोलता में प्रेम में भीगा जाता है। हे भाई! तू भी गुरु की मति पर चल के
प्रभु का नाम स्मरण करके आत्मिक अडोलता में टिक। हे भाई! जिस मनुष्यों के माथे पर
धुर-दरगाह से लिखे लेख उघड़ते हैं उनको गुरु मिलता है (और नाम की इनायत से) उनका
जनम-मरण (के चक्करों) का डर दूर हो जाता है। (जो मनुष्य गुरु की शरण पड़ कर अपने)
हृदय में से माया की ओर ले जाने वाली खोटी मति दूर करता है, वह मनुष्य परमात्मा के चरणों में
तवज्जो जोड़ता है। हे भाई! मेरे मालिक प्रभु ने जिस मनुष्यों पर मेहर की, उन्होंने हर वक्त परमात्मा के गुण
गाने आरम्भ कर दिए। हे मन! (परमात्मा की महिमा) सुन के आत्मिक अडोलता में प्रेम
में भीगा जाता है।2। हे भाई! जगत में परमात्मा का नाम ही (हरेक जीव का) पार उतारा
करता है। जो मनुष्य गुरु से नया आत्मिक जीवन लेता है, वह गुरु के शब्द को विचारता है। वह
मनुष्य गुरु के शब्द को (ज्यों-ज्यों) विचारता है (त्यों-त्यों) परमात्मा का नाम
उसको प्यारा लगने लग जाता है। पर, हे
भाई! जिस मनुष्य पर प्रभु कृपा करता है, वही
मनुष्य (ये दाति) प्राप्त करता है। वह मनुष्य आत्मिक अडोलता में टिक के दिन-रात
परमात्मा के गुण गाता रहता है, और
अपने सारे पाप दूर कर लेता है। हे प्रभु! हरेक जीव तेरा (पैदा किया हुआ है), तू सारे जीवों का पति है। हे प्रभु!
मैं तेरा (सेवक) हूँ, तू
हमारा मालिक है (हमें अपना नाम बख्श)। हे भाई! संसार में परमात्मा का नाम (ही हरेक
जीव का पार-उतारा करता है)।3। हे भाई! जिस
मनुष्यों के हृदय-घर में सज्जन-प्रभु जी आ बसते हैं, वह
मनुष्य परमात्मा के गुण गाते रहते हैं, माया
की ओर से संतोषी हो जाते हैं, वे
तृप्त हो जाते हैं। हे भाई! जो जीवात्मा सदा प्रभु के गुण गा-गा के (माया की ओर
से) तृप्त हो जाती है, उसे
दोबारा माया की भूख आ के नहीं चिपकती। जो मनुष्य सदा परमात्मा का नाम स्मरण करता
रहता है, उस सेवक की हर जगह इज्जत होती है। हे
नानक! परमात्मा खुद ही (किसी को माया में) जोड़ के (अपने चरणों से) विछोड़ता है।
परमात्मा के बिना और कोई (ऐसी सामर्थ्य वाला) नहीं है। (जिस के ऊपर मेहर करते हैं)
उसके हृदय-गृह में सज्जन-प्रभु जी आ के निवास करते हैं।4।1।
वाहेगुरु
जी का खालसा वाहेगुरु जी की फतेह ॥
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