आज का फरमान (मुखवाक
)
{श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर , तिथि:- 13-11-2020, दिन
शुक्रवार (28 कतक, संमत,, नानकशाही), पृष्ठ – 729 }
सूही महला १ घरु ६
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
उजलु कैहा चिलकणा घोटिम कालड़ी मसु ॥ धोतिआ
जूठि न उतरै जे सउ धोवा तिसु ॥१॥ सजण सेई नालि मै चलदिआ नालि चलंन्हि ॥ जिथै लेखा
मंगीऐ तिथै खड़े दिसंनि ॥१॥ रहाउ ॥ कोठे मंडप माड़ीआ पासहु चितवीआहा ॥ ढठीआ कमि न
आवन्ही विचहु सखणीआहा ॥२॥ बगा बगे कपड़े तीरथ मंझि वसंन्हि ॥ घुटि घुटि जीआ खावणे
बगे ना कहीअन्हि ॥३॥ सिमल रुखु सरीरु मै मैजन देखि भुलंन्हि ॥ से फल कमि न आवन्ही
ते गुण मै तनि हंन्हि ॥४॥ अंधुलै भारु उठाइआ डूगर वाट बहुतु ॥ अखी लोड़ी ना लहा हउ
चड़ि लंघा कितु ॥५॥ चाकरीआ चंगिआईआ अवर सिआणप कितु ॥ नानक नामु समालि तूं बधा छुटहि
जितु ॥६॥१॥३॥
व्याख्या (अर्थ ) :- राग सूही, घर ६ में गुरू नानक देव जी की बाणी । अकाल पुरख एक है और सतिगुरू की कृपा द्वारा मिलता है ।
मैंने काँसे (का) साफ और चमकीला (बर्तन) घसाया (तो उस में से) थोड़ी थोड़ी काली सियाही (लग गई)। अगर मैं सौ वारी भी उस काँसे के बर्तन को धोवा (साफ करू) तो भी (बाहरों) धोने से उस की (अंदरली) जूठ (कालिख) दूर नहीं होती ॥१॥ मेरे असल मित्र वही हैं जो (सदा) मेरे साथ रहन, और (यहाँ से) चलते समय भी मेरे साथ ही चलें, (आगे) जहाँ (किए कर्मो का) हिसाब माँगा जाता है वहाँ बेझिझक हो कर हिसाब दे सकें (भावार्थ, हिसाब देने में कामयाब हो सकें) ॥१॥ रहाउ ॥ जो घर मन्दिर महल चारों तरफ से तो चित्रे हुए हों, पर अंदर से खाली हों, (वह ढह जाते हैं और) ढहे हुए किसी काम नहीं आते ॥२॥ बगुलों के सफेद पंख होते हैं, वसते भी वह तीर्थों पर ही हैं। पर जीवों को (गला) घोट घोट के खा जाने वाले (अंदर से) साफ सुथरे नहीं कहे जाते ॥३॥ (जैसे) सिंबल का वृक्ष (है उसी प्रकार) मेरा शरीर है, (सिंबल के फलों को) देख कर तोते भ्रम खा जाते हैं, (सिंबल के) वह फल (तोतों के) काम नहीं आते, वैसे ही गुण मेरे शरीर में हैं ॥४॥ मैंने अंधे ने (सिर पर विकारों का) भार उठाया हुआ है, (आगे मेरा जीवन-पंध) बड़ा पहाड़ी मार्ग है। आँखों के साथ खोजने से भी मैं मार्ग-खहिड़ा खोज नहीं सकता (क्योंकि आँखें ही नहीं हैं। इस हालत में) किस तरीके के साथ (पहाड़ी पर) चड़ कर मैं पार निकलूँ ? ॥५॥ हे नानक जी! (पहाड़ी रस्ते जैसे बिखड़े जीवन-पंध में से पार निकलने के लिए) दुनिया के लोगों की खुश़ामदें, लोग-दिखावे और चतुराइयाँ किसी काम नहीं आ सकती। परमात्मा का नाम (अपने हृदय में) संभाल कर रख। (माया के मोह में) बंधा हुआ तूँ इस नाम (सिमरन) के द्वारा ही (मोह के बंधनों से) मुक्ति पा सकेंगा ॥६॥१॥३॥
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