आज का फरमान (मुखवाक, हिंदी में )
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आज का फरमान (मुखवाक
)
{श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर , तिथि:- 03.05.2021,
दिन सोमवार, पृष्ठ – 709 }
सलोक ॥
संत उधरण दइआलं आसरं गोपाल कीरतनह ॥ निरमलं संत संगेण ओट
नानक परमेसुरह ॥१॥ चंदन चंदु न सरद रुति मूलि न मिटई घांम ॥ सीतलु थीवै नानका
जपंदड़ो हरि नामु ॥२॥ पउड़ी ॥ चरन कमल की ओट उधरे सगल जन ॥ सुणि परतापु
गोविंद निरभउ भए मन ॥ तोटि न आवै मूलि संचिआ नामु धन ॥ संत जना सिउ संगु पाईऐ वडै
पुन ॥ आठ पहर हरि धिआइ हरि जसु नित सुन ॥१७॥
व्याख्या (अर्थ):-
सलोक ॥
जो संत जन गोपाल प्रभु के कीर्तन को अपने जीवन का सहारा बना
लेते हैं, दयाल प्रभु उन संतों को (माया की तपस से) बचा लेता है, उन संतों की संगति करने से पवित्र हो जाते हैं। हे नानक!
(तू भी ऐसे गुरमुखों की संगति में रह के) परमेश्वर का पल्ला पकड़।1। चाहे चंदन (का
लेप किया) हो चाहे चंद्रमा (की चाँदनी) हो, और चाहे ठंडी ऋतु हो - इनसे मन की
तपस बिल्कुल भी समाप्त नहीं हो सकती। हे नानक! प्रभु का नाम स्मरण करने से ही
मनुष्य (का मन) शांत होता है।2। पउड़ी ॥ प्रभु के सुंदर चरणों का आसरा ले के
सारे जीव (दुनिया की तपस से) बच जाते हैं। गोबिंद की महिमा सुन के (बँदगी वालों
के) मन निडर हो जाते हैं। वे प्रभु का नाम-धन इकट्ठा करते हैं और उस धन में कभी
घाटा नहीं पड़ता। ऐसे गुरमुखों की संगति बड़े भाग्यों से मिलती है, ये संत जन आठों पहर प्रभु को स्मरण करते हैं और सदा प्रभु
का यश सुनते हैं।17।
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वाहेगुरु
जी का खालसा
वाहेगुरु
जी की फतेह ॥
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