आज का फरमान (मुखवाक, हिंदी में )
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आज का फरमान (मुखवाक
)
{श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर , तिथि:- 04.05.2021,
दिन मंगलवार, पृष्ठ – 704 }
जैतसरी महला ५ घरु २ छंत
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
सलोकु ॥ ऊचा अगम अपार प्रभु कथनु न जाइ अकथु ॥ नानक
प्रभ सरणागती राखन कउ समरथु ॥१॥ छंतु ॥ जिउ जानहु तिउ राखु हरि प्रभ तेरिआ
॥ केते गनउ असंख अवगण मेरिआ ॥ असंख अवगण खते फेरे नितप्रति सद भूलीऐ ॥ मोह मगन
बिकराल माइआ तउ प्रसादी घूलीऐ ॥ लूक करत बिकार बिखड़े प्रभ नेर हू ते नेरिआ ॥
बिनवंति नानक दइआ धारहु काढि भवजल फेरिआ ॥१॥ सलोकु ॥ निरति न पवै असंख गुण
ऊचा प्रभ का नाउ ॥ नानक की बेनंतीआ मिलै निथावे थाउ ॥२॥ छंतु ॥ दूसर नाही
ठाउ का पहि जाईऐ ॥ आठ पहर कर जोड़ि सो प्रभु धिआईऐ ॥ धिआइ सो प्रभु सदा अपुना मनहि
चिंदिआ पाईऐ ॥ तजि मान मोहु विकारु दूजा एक सिउ लिव लाईऐ ॥ अरपि मनु तनु प्रभू आगै
आपु सगल मिटाईऐ ॥ बिनवंति नानकु धारि किरपा साचि नामि समाईऐ ॥२॥ सलोकु ॥ रे
मन ता कउ धिआईऐ सभ बिधि जा कै हाथि ॥ राम नाम धनु संचीऐ नानक निबहै साथि ॥३॥ छंतु
॥ साथीअड़ा प्रभु एकु दूसर नाहि कोइ ॥ थान थनंतरि आपि जलि थलि पूर सोइ ॥ जलि
थलि महीअलि पूरि रहिआ सरब दाता प्रभु धनी ॥ गोपाल गोबिंद अंतु नाही बेअंत गुण ता
के किआ गनी ॥ भजु सरणि सुआमी सुखह गामी तिसु बिना अन नाहि कोइ ॥ बिनवंति नानक दइआ
धारहु तिसु परापति नामु होइ ॥३॥ सलोकु ॥ चिति जि चितविआ सो मै पाइआ ॥ नानक
नामु धिआइ सुख सबाइआ ॥४॥ छंतु ॥ अब मनु छूटि गइआ साधू संगि मिले ॥ गुरमुखि
नामु लइआ जोती जोति रले ॥ हरि नामु सिमरत मिटे किलबिख बुझी तपति अघानिआ ॥ गहि भुजा
लीने दइआ कीने आपने करि मानिआ ॥ लै अंकि लाए हरि मिलाए जनम मरणा दुख जले ॥ बिनवंति
नानक दइआ धारी मेलि लीने इक पले ॥४॥२॥
व्याख्या (अर्थ ):-
सलोकु। हे सबसे ऊँचे!
हे अगम्य (पहुँच से परे)! हे बेअंत! तू सबका मालिक है, तेरा स्वरूप बयान
नहीं किया जा सकता, बयान से परे हैं। हे नानक! (कह:) हे प्रभु! मैं तेरी शरण आया हूँ, तू (शरण आए की)
रक्षा करने की ताकत रखता है। 1। छंतु। हे हरि! हे प्रभु! मैं तेरा हूँ, जैसे ठीक समझो वैसे (माया के मोह से) मेरी रक्षा कर। मैं
(अपने) कितने अवगुण गिनूँ? मेरे अंदर अनगिनत अवगुण हैं। हे प्रभु! मेरे
अनगिनत ही अवगुण हैं, पापों के चक्करों में फंसा रहता हूँ, नित्य ही हमेशा
ही गलतियां करता रहता हूँ (मात खा जाता हूँ)। (वैसे तो मनुष्य) भयानक माया के मोह
में मस्त रहता है, तेरी कृपा से ही बचा जा सकता है। हम जीव दुखदाई
विकार (अपनी ओर से) पर्दे में रह कर करते हैं, पर, हे प्रभु! तू
हमारे नजदीक से नजदीक (हमारे साथ ही) बसता है। नानक विनती करता है हे प्रभु! हम पर
मेहर कर, हम जीवों को संसार-समुंदर के (विकारों के) चक्करों में से
निकाल ले।1। सलोकु। हे भाई! परमात्मा के अनगिनत गुणों का
निर्णय नहीं हो सकता, उसका बड़प्पन सबसे ऊँचा है। नानक की (उसके दर पर
ही) अरदास है कि (मुझ) निआसरे को (उसके चरणों में) जगह मिल जाए।2। छंतु।
हे भाई! हम जीवों के लिए परमात्मा के बिना और कोई जगह नहीं है, (परमात्मा का दर
छोड़ के) हम और किस के पास जा सकते हैं? दोनों हाथ जोड़ के
आठों पहर (हर वक्त) प्रभु का ध्यान धरना चाहिए। हे भाई! अपने उस प्रभु का ध्यान धर
के (उसके दर से) मन मांगी मुरादें हासिल कर ली जाती हैं। (अपने अंदर से) अहंकार, मोह, और कई अन्य आसरे
तलाशने की बुराई त्याग के एक परमात्मा के चरणों से ही तवज्जो जोड़नी चाहिए। हे भाई!
प्रभु की हजूरी में अपना मन अपना शरीर भेटा करके (अपने अंदर से) सारा स्वै भाव
मिटा देना चाहिए। नानक (तो प्रभु के दर पर ही) बिनती करता है (और कहता है: हे
प्रभु!) मेहर कर (तेरी मेहर से ही तेरे) सदा-स्थिर रहने वाले नाम में लीन हुआ जा
सकता है।2। सलोकु। हे (मेरे) मन! जिस परमात्मा के हाथ में
(हमारी) हरेक (जीवन-) जुगति है, उसका नाम स्मरणा चाहिए। हे नानक! परमात्मा का
नाम-धन एकत्र करना चाहिए, (यही धन) हमारे साथ साथ निभाता है।3। छंतु।
हे भाई! सिर्फ परमात्मा ही (सदा साथ निभने वाला) साथी है, उसके बिना और कोई
(साथी) नहीं। वही परमात्मा पानी में, धरती पर, आकाश में बस रहा
है। हे भाई! वह मालिक प्रभु पानी में, धरती पर, आकाश में व्याप
रहा है, सब जीवों को दातें देने वाला है। उस गोपाल गोबिंद (के
गुणों) का अंत नहीं पाया जा सकता, उसके गुण बेअंत हैं, मैं उसके क्या
गुण गिन सकता हूँ? हे भाई! उस मालिक की शरण पड़ा रह, वह ही सारे सुख
पहुँचाने वाला है। उसके बिना (हम जीवों का) और कोई (सहारा) नहीं है। नानक विनती
करता है: हे प्रभु! जिस के ऊपर तू मेहर करता है, उसको तेरा नाम
हासिल हो जाता है।3। सलोकु। हे नानक! (कह: हे भाई!)
परमात्मा का नाम स्मरण किया कर, (उसके दर से) सारे सुख
(मिल जाते हैं), मैंने तो जो भी मांग अपनी चिक्त में (उससे) मांगी है, वह मुझे (सदा)
मिल गई है।4। छंतु। हे भाई! गुरु की संगति में मिल के अब (मेरा)
मन (माया के मोह से) स्वतंत्र हो गया है। जिन्होंने भी) गुरु की शरण पड़ कर
परमात्मा का नाम स्मरण किया है, उनकी जिंद परमात्मा की ज्योति में लीन रहती है।
हे भाई! परमात्मा का नाम स्मरण करने से सारे पाप मिट जाते हैं, विकारों की) जलन समाप्त हो जाती है, (मन माया की ओर
से) तृप्त हो जाता है। जिस पर प्रभु दया करता है, जिनकी बाँह पकड़
के अपना बना लेता है, आदर देता है, जिनको अपने चरणों
में जोड़ लेता है अपने साथ मिला लेता ळै, उनके जनम-मरन के
सारे दुख जल (के राख हो) जाते हैं। नानक निवेदन कर
रहे हैं, हे भाई! जिस पर प्रभु दया करता है, उनको एक पल में अपने साथ मिला लेता
है।4।2।
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वाहेगुरु जी का
खालसा
वाहेगुरु जी की
फतेह ॥
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