आज का फरमान (मुखवाक, हिंदी में )
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आज का फरमान (मुखवाक
)
{श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर , तिथि:- 29.04.2021,
दिन गुरूवार, पृष्ठ – 688 }
धनासरी महला १ ॥
जीवा तेरै नाइ मनि आनंदु है जीउ ॥ साचो साचा नाउ गुण
गोविंदु है जीउ ॥ गुर गिआनु अपारा सिरजणहारा जिनि सिरजी तिनि गोई ॥ परवाणा आइआ
हुकमि पठाइआ फेरि न सकै कोई ॥ आपे करि वेखै सिरि सिरि लेखै आपे सुरति बुझाई ॥ नानक
साहिबु अगम अगोचरु जीवा सची नाई ॥१॥ तुम सरि अवरु न कोइ आइआ जाइसी जीउ ॥ हुकमी होइ
निबेड़ु भरमु चुकाइसी जीउ ॥ गुरु भरमु चुकाए अकथु कहाए सच महि साचु समाणा ॥ आपि
उपाए आपि समाए हुकमी हुकमु पछाणा ॥ सची वडिआई गुर ते पाई तू मनि अंति सखाई ॥ नानक
साहिबु अवरु न दूजा नामि तेरै वडिआई ॥२॥ तू सचा सिरजणहारु अलख सिरंदिआ जीउ ॥ एकु
साहिबु दुइ राह वाद वधंदिआ जीउ ॥ दुइ राह चलाए हुकमि सबाए जनमि मुआ संसारा ॥ नाम
बिना नाही को बेली बिखु लादी सिरि भारा ॥ हुकमी आइआ हुकमु न बूझै हुकमि सवारणहारा
॥ नानक साहिबु सबदि सिञापै साचा सिरजणहारा ॥३॥ भगत सोहहि दरवारि सबदि सुहाइआ जीउ ॥
बोलहि अम्रित बाणि रसन रसाइआ जीउ ॥ रसन रसाए नामि तिसाए गुर कै सबदि विकाणे ॥
पारसि परसिऐ पारसु होए जा तेरै मनि भाणे ॥ अमरा पदु पाइआ आपु गवाइआ विरला गिआन
वीचारी ॥ नानक भगत सोहनि दरि साचै साचे के वापारी ॥४॥ भूख पिआसो आथि किउ दरि जाइसा
जीउ ॥ सतिगुर पूछउ जाइ नामु धिआइसा जीउ ॥ सचु नामु धिआई साचु चवाई गुरमुखि साचु
पछाणा ॥ दीना नाथु दइआलु निरंजनु अनदिनु नामु वखाणा ॥ करणी कार धुरहु फुरमाई आपि
मुआ मनु मारी ॥ नानक नामु महा रसु मीठा त्रिसना नामि निवारी ॥५॥२॥
व्याख्या (अर्थ):-
धनासरी महला १ ॥
हे प्रभु जी! तेरे नाम में (जुड़ के) मेरे अंदर आत्मिक जीवन
पैदा होता है, मेरे मन में खुशी पैदा होती है। हे भाई! परमात्मा का नाम
सदा स्थिर रहने वाला है, प्रभु गुणों (का खजाना) है और धरती के जीवों के दिलोंकी
जानने वाला है। गुरु का बख्शा हुआ ज्ञान बताता है कि विधाता प्रभु बेअंत है, जिसने ये सृष्टि पैदा की है, वही इसका नाश करता है। जब उसके
हुक्म में भेजा हुआ आमंत्रण आता है तो कोई भी जीव (उसके बुलावे को) रोक नहीं सकता।
परमात्मा स्वयं ही (जीवों को) पैदा करके आप ही संभाल करता है, आप ही हरेक जीव के सिर पर (उसके किए कर्मों के अनुसार) लेख
लिखता है, खुद ही (जीव को सही जीवन-राह की) सूझ बख्शता है।
मालिक-प्रभु अगम्य (पहुँच से परे) है, जीवों की ज्ञान-इंद्रिय की उस तक
पहुँच नहीं हो सकती। हे नानक! (उसके दर पर अरदास कर, और कह: हे प्रभु!) तेरी सदा कायम
रहने वाली महिमा करके मेरे अंदर आत्मिक जीवन पैदा होता है (मुझे अपनी महिमा
बख्श)।1। हे प्रभु जी! तेरे बराबर का और कोई नहीं है, (और जो भी जगत में) आया है, (वह यहाँ से आखिर) चला जाएगा (तू ही
सदा कायम रहने वाला है)। जिस मनुष्य की भटकना (गुरु) दूर करता है, प्रभु के हुक्म अनुसार उसके जनम-मरण के चक्कर का खात्मा हो
जाता है। गुरु जिसकी भटकना दूर करता है, उससे उस परमात्मा की महिमा करवाता
है जिसके गुण बयान से परे हैं। वह मनुष्य सदा-स्थिर प्रभु (की याद) में रहता है, सदा स्थिर प्रभु (उसके हृदय में) प्रगट हो जाता है। वह
मनुष्य रजा के मालिक प्रभु का हुक्म पहचान लेता है (और समझ लेता है कि) प्रभु खुद
ही पैदा करता है और खुद ही (अपने में) लीन कर लेता है। हे प्रभु! जिस मनुष्य ने
तेरी महिमा (की दाति) गुरु से प्राप्त कर ली है, तू उसके मन में आ बसता है और अंत
के समय भी उसका साथी बनता है। हे नानक! मालिक प्रभु सदा कायम रहने वाला है, उस जैसा कोई और नहीं। (उसके दर पर अरदास कर और कह:) हे
प्रभु! तेरे नाम में जुड़ने से (लोक-परलोक में) आदर मिलता है।2। हे अदृष्य रचनहार!
तू सदा स्थिर रहने वाला है और सब जीवों को पैदा करने वाला है। एक ही विधाता (सारे
जगत का) मालिक है, उसने (पैदा होना और मरना) दो रास्ते चलाए हैं। (उसीकी रजा
के अनुसार जगत में) झगड़े बढ़ते हैं। दोनों रास्ते प्रभु ने ही चलाए हैं, सारे जीव उसी के हुक्म में हैं, (उसी के हुक्म अनुसार) जगत पैदा होता व मरता रहता है। (जीव
नाम को भुला के माया के मोह का) जहर-रूपी भार अपने सिर पर इकट्ठा किए जाता है, (और ये नहीं समझता कि) परमात्मा के नाम के बिना और कोई भी
साथी मित्र नहीं बन सकता। जीव (परमात्मा के) हुक्म अनुसार (जगत में) आता है, (पर माया के मोह में फंस के उस) हुक्म को नहीं समझता। प्रभु
आप ही जीवों को अपने हुक्म अनुसार (सीधे रास्ते पर डाल के) सँवारने में समर्थ है।
हे नानक! गुरु के शब्द में जुड़ने से ये पहचान हो जाती है कि जगत का मालिक
सदा-स्थिर रहने वाला है और सबको पैदा करने वाला है।3। हे भाई! परमात्मा की भक्ति
करने वाले बंदे परमात्मा की हजूरी में शोभते हैं, क्योंकि गुरु के शब्द की इनायत से
वह अपने जीवन को सुंदर बना लेते हैं। वह लोग आत्मिक जीवन देने वाली वाणी अपनी जीभ
से उचारते रहते हैं, जीव को उस वाणी के साथ एकरस कर लेते हैं। भक्त जन प्रभु के
नाम के साथ जीभ को रसित कर लेते हैं, नाम में जुड़ के (नाम के वास्ते
उनकी) प्यास बढ़ती है, गुरु के शब्द से वह प्रभु-नाम से कुर्बान होते हैं, (नाम की खातिर और सब शारीरिक सुख कुर्बान करते हैं)। हे
प्रभु! जब (भक्तजन) तेरे मन को प्यारे लगते हैं, तो वह गुरु पारस से छू के स्वयं भी
पारस बन जाते हैं (और लोगों को पवित्र जीवन देने के लायक बन जाते हैं)। जो लोग
स्वैभाव दूर करते हैं उन्हें वह आत्मिक दर्जा मिल जाता है जहाँ आत्मिक मौत असर
नहीं कर सकती। पर ऐसा कोई विरला ही गुरु के दिए ज्ञान की विचार करने वाला सख्श
होता है। हे नानक! परमात्मा की भक्ति करने वाले बंदे सदा-स्थिर प्रभु के दर पर
शोभा पाते हैं, वह (अपने सारे जीवन में) सदा-स्थिर प्रभु के नाम का ही
व्यापार करते हैं।4। जब तक मैं माया के वास्ते भूखा प्यासा रहता हूँ, तब तक मैं किसी भी तरह प्रभु के दर पर पहुँच नहीं सकता।
(माया की तृष्णा दूर करने का इलाज) मैं जा के अपने गुरु से पूछता हूँ (और उसकी
शिक्षा के अनुसार) मैं परमात्मा का नाम स्मरण करता हूँ (नाम ही तृष्णा दूर करता
है)। गुरु की शरण पड़ कर मैं सदा-स्थिर नाम स्मरण करता हूँ सदा-स्थिर प्रभु (की
महिमा) उचारता हूँ, और सदा स्थिर प्रभु से सांझ पाता हूँ। मैं हर रोज उस प्रभु
का नाम मुँह से बोलता हूँ जो दीनों का सहारा है जो दया का श्रोत है और जिस पर माया
का प्रभाव नहीं पड़ सकता। परमात्मा ने जिस मनुष्य को अपनी हजूरी से ही नाम-स्मरण का
करणीय कार्य करने का हुक्म दे दिया, वह मनुष्य अपने मन को (माया की ओर
से) मार के तृष्णा के प्रभाव से बच जाता है। हे नानक! उस मनुष्य को प्रभु का नाम
ही मीठा व सभी रसों से श्रेष्ठ लगता है, उसने नाम-जपने की इनायत से माया की
तृष्णा (अपने अंदर से) दूर कर ली होती है।5।2।
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वाहेगुरु
जी का खालसा
वाहेगुरु
जी की फतेह ॥
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