आज का फरमान (मुखवाक, हिंदी में )
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आज का फरमान (मुखवाक
)
{श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर , तिथि:- 27.04.2021,
दिन मंगलवार, पृष्ठ – 729 }
सूही महला १ घरु ६
ੴ सतिगुर
प्रसादि ॥
उजलु कैहा चिलकणा घोटिम कालड़ी मसु ॥ धोतिआ जूठि न उतरै जे
सउ धोवा तिसु ॥१॥ सजण सेई नालि मै चलदिआ नालि चलंन्हि ॥ जिथै लेखा मंगीऐ तिथै खड़े
दिसंनि ॥१॥ रहाउ ॥ कोठे मंडप माड़ीआ पासहु चितवीआहा ॥ ढठीआ कमि न आवन्ही विचहु
सखणीआहा ॥२॥ बगा बगे कपड़े तीरथ मंझि वसंन्हि ॥ घुटि घुटि जीआ खावणे बगे ना
कहीअन्हि ॥३॥ सिमल रुखु सरीरु मै मैजन देखि भुलंन्हि ॥ से फल कमि न आवन्ही ते गुण
मै तनि हंन्हि ॥४॥ अंधुलै भारु उठाइआ डूगर वाट बहुतु ॥ अखी लोड़ी ना लहा हउ चड़ि
लंघा कितु ॥५॥ चाकरीआ चंगिआईआ अवर सिआणप कितु ॥ नानक नामु समालि तूं बधा छुटहि
जितु ॥६॥१॥३॥
व्याख्या (अर्थ):-
राग सूही, घर ६ में, गुरू नानक देव जी की बाणी।
अकाल पुरख एक है और सतिगुरू की कृपा से मिलता है।
मैंने कांसे (का) साफ और चमकीला (बर्तन) घिसाया (तब उसमें
से) थोड़ी-थोड़ी काली स्याही (लग गई)। अगर मैं सौ बार भी उस कांसे के बर्तन को धोऊँ
(साफ करूँ) तो भी (बाहर से) धोने से उसके (अंदर की) जूठ (कालिख़) दूर नहीं होती।1। मेरे असल मित्र वही हैं जो (हमेशा) मेरे साथ रहें, और (यहाँ से) चलने के वक्त भी मेरे साथ ही चलें, (आगे) जहाँ (किए कर्मों का) हिसाब माँगा जाता है वहाँ बेबाकी
से (बेझिझक हो के) हिसाब दे सकें (भाव, हिसाब देने में कामयाब हो सकें)।1। रहाउ। जो घर-मन्दिर-महल चारों तरफ़ से चित्रे हुए हों (सजे
धजे हों), पर अंदर से ख़ाली हों, (वे गिर जाते हैं और) गिरे हुए किसी
काम नहीं आते।2। बगलों के पंख सफेद होते हैं, बसते भी वे तीर्थों पर ही हैं। पर जीवों को (गले से)
घोट-घोट के खाने वाले (अंदर से) साफ-सुथरे नहीं कहे जाते।3। (जैसे) सिंबल का वृक्ष (है, वैसे) मेरा ये शरीर है, (सिंबल के फलों को) देख के तोते भुलेखा खा जाते हैं, (सिंबल के) वे फल (तोतों के) काम नहीं आते, वैसे ही गुण मेरे शरीर में हैं।4। मुझ अंधे ने (सिर पर विकारों का) भार उठाया हुआ है, (आगे मेरा जीवन-राह) बहुत ही पहाड़ी रास्ता है। आँखों से तलाश
के मैं राह-ठिकाना नहीं तलाश सकता (क्योंकि आँखें हैं ही नहीं। इस हालत में) किस
तरीके से (पहाड़ी पर) चढ़ कर मैं पार लांघूँ?।5। हे नानक! (पहाड़ी रास्ते जैसे
बिखड़े जीवन-राह में पार लंघने के लिए) दुनिया के लोगों की खुशामदें, लोक-दिखावे और चालाकियाँ किसी काम नहीं आ सकतीं। परमात्मा
का नाम (अपने हृदय में) संभाल के रख। (माया के मोह में) बँधा हुआ तू इस नाम
(-स्मरण) के द्वारा ही (मोह के बंधनो से) खलासी पा सकेगा।6।1।3।
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वाहेगुरु
जी का खालसा
वाहेगुरु
जी की फतेह ॥
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