आज का फरमान (मुखवाक, हिंदी में )
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आज का फरमान (मुखवाक
)
{श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर , तिथि:- 02.04.2021,
दिन शुक्रवार, पृष्ठ – 599 }
सोरठि महला ३ घरु १
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
सेवक सेव करहि सभि तेरी जिन सबदै सादु आइआ ॥ गुर किरपा ते
निरमलु होआ जिनि विचहु आपु गवाइआ ॥ अनदिनु गुण गावहि नित साचे गुर कै सबदि सुहाइआ
॥१॥ मेरे ठाकुर हम बारिक सरणि तुमारी ॥ एको सचा सचु तू केवलु आपि मुरारी ॥ रहाउ॥
जागत रहे तिनी प्रभु पाइआ सबदे हउमै मारी ॥ गिरही महि सदा हरि जन उदासी गिआन तत
बीचारी ॥ सतिगुरु सेवि सदा सुखु पाइआ हरि राखिआ उर धारी ॥२॥ इहु मनूआ दह दिसि
धावदा दूजै भाइ खुआइआ ॥ मनमुख मुगधु हरि नामु न चेतै बिरथा जनमु गवाइआ ॥ सतिगुरु
भेटे ता नाउ पाए हउमै मोहु चुकाइआ ॥३॥ हरि जन साचे साचु कमावहि गुर कै सबदि वीचारी
॥ आपे मेलि लए प्रभि साचै साचु रखिआ उर धारी ॥ नानक नावहु गति मति पाई एहा रासि
हमारी ॥४॥१॥
व्याख्या (अर्थ ):-
हे प्रभु! तेरे जिस सेवकों को गुरु के शब्द का
रस आ जाता है वही सारे तेरी सेवा-भक्ति करते हैं। (हे भाई!) जिस मनुष्य ने गुरु की
कृपा से अपने अंदर से स्वै भाव दूर कर लिया वह पवित्र (जीवन वाला) हो जाता है। जो
मनुष्य गुरु के शब्द में (जुड़ के) हर वक्त सदा स्थिर प्रभु के गुण गाते रहते हैं, वे सुंदर जीवन
वाले बन जाते हैं।1। हे मेरे मालिक प्रभु! हम (जीव) तेरे बच्चे हैं, तेरी शरण आए हैं।
सिर्फ एक तू ही सदा कायम रहने वाला है (जीव माया में डोल जाते हैं)। रहाउ। हे भाई!
जो मनुष्य गुरु के शब्द से (अपने अंदर से) अहंकार समाप्त कर लेते हैं, वे (माया के मोह
आदि से) सचेत रहते हैं, उन्होंने ही परमात्मा का मिलाप हासिल किया है।
परमात्मा के भक्त गुरु के असल ज्ञान के द्वारा विचारवान हो के गृहस्थ में रहते हुए
भी माया से विरक्त रहते हैं। वह भक्त गुरु की बताई हुई सेवा करके सदा आत्मिक आनंद
पाते हैं, और परमात्मा को अपने दिल में बसाए रखते हैं।2। हे भाई! ये
अल्लहड़ मन माया के मोह में फंस के दसों दिशाओं में दौड़ता रहता है, और (जीवन के सही
राह से) उखड़ा फिरता है। अपने मन के पीछे चलने वाला मूर्ख मनुष्य परमात्मा का नाम
याद नहीं करता, अपना जीवन व्यर्थ गवा लेता है। पर जब उसे गुरु मिल जाता है
तब वह हरि नाम की दाति हासिल करता है, और, अपने अंदर से
माया का मोह और अहंकार दूर कर लेता है।3। हे भाई! गुरु के शब्द के द्वारा विचारवान
हो के परमात्मा के दास सदा स्थिर परमात्मा का सदा-स्थिर नाम-जपने की कमाई करते रहते
हैं। सदा स्थिर रहने वाले परमात्मा ने स्वयं ही उनको अपने चरणों में मिला लिया
होता है। वह सदा कायम रहने वाले प्रभु को अपने दिल में बसाए रखते हैं। हे नानक!
(कह:) परमात्मा के नाम से ही ऊँची आत्मिक अवस्था और (अच्छी) बुद्धि प्राप्त होती
है। परमात्मा का नाम ही हम (जीवों की) संपत्ति है।4।1।
वाहेगुरु जी का
खालसा
वाहेगुरु जी की
फतेह ॥
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