आज का फरमान (मुखवाक, हिंदी में )
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आज का फरमान (मुखवाक
)
{श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर , तिथि:- 20.03.2021,
दिन शनिवार ,पृष्ठ – 696 }
जैतसरी महला ४
घरु १ चउपदे
ੴ सतिगुर
प्रसादि ॥
मेरै हीअरै रतनु नामु हरि बसिआ गुरि हाथु
धरिओ मेरै माथा ॥ जनम जनम के किलबिख दुख उतरे गुरि नामु दीओ रिनु लाथा ॥१॥ मेरे मन
भजु राम नामु सभि अरथा ॥ गुरि पूरै हरि नामु द्रिड़ाइआ बिनु नावै जीवनु बिरथा ॥
रहाउ॥ बिनु गुर मूड़ भए है मनमुख ते मोह माइआ नित फाथा ॥ तिन साधू चरण न सेवे कबहू
तिन सभु जनमु अकाथा ॥२॥ जिन साधू चरण साध पग सेवे तिन सफलिओ जनमु सनाथा ॥ मो कउ
कीजै दासु दास दासन को हरि दइआ धारि जगंनाथा ॥३॥ हम अंधुले गिआनहीन अगिआनी किउ
चालह मारगि पंथा ॥ हम अंधुले कउ गुर अंचलु दीजै जन नानक चलह मिलंथा ॥४॥१॥
व्याख्या (अर्थ ) :-
जैतसरी महला ४
घरु १ चउपदे
ੴ सतिगुर
प्रसादि ॥
(हे भाई! जब) गुरु ने मेरे सिर पर अपना हाथ
रखा, तो मेरे हृदय में परमात्मा का रतन (जैसा
कीमती) नाम आ बसा। (हे भाई! जिस भी मनुष्य को) गुरु ने परमात्मा का नाम दिया, उसके अनेक जन्मों के पाप-दुख दूर हो गए, (उसके सिर से पापों का) कर्जा उतर गया।1। हे मेरे मन! (सदा) परमात्मा का नाम स्मरण
किया कर, (परमात्मा) सारे पदार्थ (देने वाला है)। (हे
मन गुरु की शरण पड़ा रह) पूरे गुरु ने (ही) परमात्मा का नाम (हृदय में) पक्का किया
है। और, नाम के बिना मानव जन्म व्यर्थ चला जाता है।
रहाउ। हे भाई! जो लोग अपने मन के पीछे चलते हैं वे गुरु (की शरण) के बिना मूर्ख
हुए रहते हैं, वे सदा माया
के मोह में फंसे रहते हैं। उन्होंने कभी भी गुरु का आसरा नहीं लिया, उनका सारा जीवन व्यर्थ चला जाता है।2। हे भाई! जो मनुष्य गुरु के चरणों की ओट
लेते हैं, वे खसम वाले हो जाते हैं, उनकी जिंदगी कामयाब हो जाती है। हे हरि! हे
जगत के नाथ! मेरे पर मेहर कर, मुझे अपने
दासों के दासों का दास बना ले।3। हे गुरु! हम
माया में अंधे हो रहे हैं, हम आत्मिक
जीवन की सूझ से वंचित हैं, हमें सही जीवन
जुगति की सूझ नहीं है, हम तेरे बताए
हुए जीवन-राह पर नहीं चल सकते। हे दास नानक! (कह:) हे गुरु! हम अंधों को अपना
पल्ला पकड़ा, ता कि तेरे
पल्ले लग के हम तेरे बताए हुए रास्ते पर चल सकें।4।1।
वाहिगुरु जी का खालसा वाहिगुरु जी
की फतेह
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