आज का फरमान (मुखवाक
)
{श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर , तिथि:- 06.03.2021,
दिन शनिवार, पृष्ठ – 660 }
धनासरी महला १ घरु १ चउपदे
ੴ सति नामु करता पुरखु
निरभउ निरवैरु अकाल मूरति
अजूनी सैभं गुर प्रसादि ॥
जीउ डरतु है आपणा कै सिउ करी पुकार ॥ दूख
विसारणु सेविआ सदा सदा दातारु ॥१॥ साहिबु मेरा नीत नवा सदा सदा दातारु ॥१॥ रहाउ ॥
अनदिनु साहिबु सेवीऐ अंति छडाए सोइ ॥ सुणि सुणि मेरी कामणी पारि उतारा होइ ॥२॥
दइआल तेरै नामि तरा ॥ सद कुरबाणै जाउ ॥१॥ रहाउ ॥ सरबं साचा एकु है दूजा नाही कोइ ॥
ता की सेवा सो करे जा कउ नदरि करे ॥३॥ तुधु बाझु पिआरे केव रहा ॥ सा वडिआई देहि
जितु नामि तेरे लागि रहां ॥ दूजा नाही कोइ जिसु आगै पिआरे जाइ कहा ॥१॥ रहाउ ॥ सेवी
साहिबु आपणा अवरु न जाचंउ कोइ ॥ नानकु ता का दासु है बिंद बिंद चुख चुख होइ ॥४॥
साहिब तेरे नाम विटहु बिंद बिंद चुख चुख होइ ॥१॥ रहाउ ॥४॥१॥
व्याख्या (अर्थ ) :-
धनासरी राग ,घर १ मे गुरू नानक
देव जी की चार-बँदों वाली बाणी।
अकाल पुरख एक है, जिस का नाम सच्चा है जो सिृसटी का रचनहार है, जो सब में मौजूद है, डर से रहित है, वैर रहित है, जिस का सरूप काल से परे है, (मतलब जिस का शरीर नाश रहित है), जो जूनों में नही आता, जिस का प्रकाश अपने आप से हुआ है और जो सतिगुरू की कृपा से मिलता है।
(जगत दुखों का समुंदर है, इन दुखों को देख के) मेरी
जीवात्मा काँपती है (परमात्मा के बिना और कोई बचाने वाला दिखाई नहीं देता) जिसके
पास मैं मिन्नतें करूँ। (सो, अन्य आसरे छोड़ के) मैं दुखों के नाश करने वाले प्रभु को ही स्मरण करता हूँ, वह सदा ही बख्शिशें करने
वाला है।1। (फिर वह) मेरा मालिक सदा बख्शिशें करता रहता है (पर वह मेरी रोज के
तरले सुन के उकताता नहीं, बख्शिशों में) नित्य यूँ है जैसे पहली बार ही बख्शिशें करने लगा है।1। रहाउ।
हे मेरी जिंदे! हर रोज उस मालिक को ही याद करना चाहिए (दुखों में से) आखिर वह ही
बचाता है। हे जिंदे! ध्यान से सुन (उस मालिक का आसरा लेने से ही दुख के समुंदर में
से) पार लांघा जा सकता है।2। हे दयालु प्रभु! मैं तुझसे सदा सदके जाता हूँ (मेहर
कर, अपना नाम दे, ता कि) तेरे नाम के द्वारा
मैं (दुखों के इस समुंदर में से) पार लांघ सकूँ।1। रहाउ। सदा कायम रहने वाला
परमात्मा ही सब जगह मौजूद है, उसके बिना और कोई नहीं। जिस जीव पर वह मेहर की निगाह करता है, वह उसका स्मरण करता है।3।
हे प्यारे (प्रभु!) तेरी याद के बिना मैं व्याकुल हो जाता हूँ। मुझे वह कोई बड़ी
दाति दे, जिस सदका मैं तेरे नाम में
जुड़ा रहूँ। हे प्यारे! तेरे बिना और कोई ऐसा नहीं हैं, जिसके पास जा के मैं ये
आरजू कर सकूँ।1। रहाउ। (दुखों के इस सागर में से तैरने के लिए) मैं अपने मालिक
प्रभु को ही याद करता हूँ, किसी और से मैं यह माँग नहीं माँगता। नानक (अपने) उस (मालिक) का ही सेवक है, उस मालिक से ही खिन खिन
सदके होता है।4। हे मेरे मालिक! मैं तेरे नाम से छिन-छिन कुर्बान जाता हूँ।1।
रहाउ।
वाहेगुरु जी का
खालसा वाहेगुरु जी की फतेह ॥
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