आज का फरमान (मुखवाक, हिंदी में )
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आज का फरमान (मुखवाक
)
{श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर , तिथि:- 25.03.2021,
दिन गुरूवार, पृष्ठ – 733 }
सूही महला ४ घरु
६
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
नीच जाति हरि
जपतिआ उतम पदवी पाइ ॥ पूछहु बिदर दासी सुतै किसनु उतरिआ घरि जिसु जाइ ॥१॥ हरि की
अकथ कथा सुनहु जन भाई जितु सहसा दूख भूख सभ लहि जाइ ॥१॥ रहाउ॥ रविदासु चमारु उसतति
करे हरि कीरति निमख इक गाइ ॥ पतित जाति उतमु भइआ चारि वरन पए पगि आइ ॥२॥ नामदेअ
प्रीति लगी हरि सेती लोकु छीपा कहै बुलाइ ॥ खत्री ब्राहमण पिठि दे छोडे हरि नामदेउ
लीआ मुखि लाइ ॥३॥ जितने भगत हरि सेवका मुखि अठसठि तीरथ तिन तिलकु कढाइ ॥ जनु नानकु
तिन कउ अनदिनु परसे जे क्रिपा करे हरि राइ ॥४॥१॥८॥
व्याख्या (अर्थ ) :-
सूही महला ४ घरु
६
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
हे भाई! नीच जाति वाला मनुष्य भी परमात्मा का नाम जपने से
उच्च आत्मिक दर्जा हासिल कर लेता है (अगर यकीन नहीं होता, तो किसी से) दासी
के पुत्र बिदर की बात पूछ के देख लो। उस बिदर के घर में कृष्ण जी जा के ठहरे थे।1।
हे सज्जनो! परमात्मा की आश्चर्य महिमा सुना करो, जिसकी इनायत से
हरेक किस्म की सहम, हरेक दुख दूर हो जाता है, (माया की) भूख मिट
जाती है।1। रहाउ। हे भाई! (भक्त) रविदास (जाति का) चमार (था, वह परमात्मा की)
महिमा करता था, वह हर वक्त प्रभु की कीर्ति गाता रहता था। नीच जाति का रविदास
महापुरुष बन गया। चारों वर्णों के मनुष्य उसके पैरों में आ के लगे।2। हे भाई!
(भक्त) नामदेव की परमात्मा के साथ प्रीति बन गई। जगत उसे धोबी (छींबा) बुलाता था।
परमात्मा ने क्षत्रियों-ब्राहमणों को पीठ दे दी, और नामदेव को
माथे से लगाया था।3। हे भाई! परमात्मा के जितने भी भक्त हैं, सेवक हैं, उनके माथे पर
अढ़सठ तीर्थ तिलक लगाते हैं (सारे ही तीर्थ भी उनका आदर-मान करते हैं)। हे भाई! अगर
प्रभु-पातशाह मेहर करे, तो दास नानक हर वक्त उन (भगतों-सेवकों) के चरण
छूता है।4।1।8।
वाहेगुरु जी का खालसा वाहेगुरु जी की फतेह ॥
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