आज का फरमान (मुखवाक
)
{श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर , तिथि:- 02.03.2021,
दिन मंगलवार ,पृष्ठ – 639 }
सोरठि महला ५ घरु
१ असटपदीआ
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
सभु जगु जिनहि उपाइआ भाई
करण कारण समरथु ॥ जीउ पिंडु जिनि
साजिआ भाई दे करि अपणी वथु ॥ किनि कहीऐ किउ
देखीऐ भाई करता एकु अकथु ॥ गुरु गोविंदु
सलाहीऐ भाई जिस ते जापै तथु ॥१॥ मेरे मन जपीऐ हरि
भगवंता ॥ नाम दानु देइ जन
अपने दूख दरद का हंता ॥ रहाउ ॥ जा कै घरि सभु
किछु है भाई नउ निधि भरे भंडार ॥ तिस की कीमति ना
पवै भाई ऊचा अगम अपार ॥ जीअ जंत
प्रतिपालदा भाई नित नित करदा सार ॥ सतिगुरु पूरा
भेटीऐ भाई सबदि मिलावणहार ॥२॥ सचे चरण सरेवीअहि
भाई भ्रमु भउ होवै नासु ॥ मिलि संत सभा मनु
मांजीऐ भाई हरि कै नामि निवासु ॥ मिटै अंधेरा
अगिआनता भाई कमल होवै परगासु ॥ गुर बचनी सुखु
ऊपजै भाई सभि फल सतिगुर पासि ॥३॥ मेरा तेरा छोडीऐ
भाई होईऐ सभ की धूरि ॥ घटि घटि ब्रहमु
पसारिआ भाई पेखै सुणै हजूरि ॥ जितु दिनि विसरै
पारब्रहमु भाई तितु दिनि मरीऐ झूरि ॥ करन करावन समरथो
भाई सरब कला भरपूरि ॥४॥ प्रेम पदारथु
नामु है भाई माइआ मोह बिनासु ॥ तिसु भावै ता
मेलि लए भाई हिरदै नाम निवासु ॥ गुरमुखि कमलु
प्रगासीऐ भाई रिदै होवै परगासु ॥ प्रगटु भइआ
परतापु प्रभ भाई मउलिआ धरति अकासु ॥५॥ गुरि पूरै संतोखिआ
भाई अहिनिसि लागा भाउ ॥ रसना रामु रवै
सदा भाई साचा सादु सुआउ ॥ करनी सुणि सुणि
जीविआ भाई निहचलु पाइआ थाउ ॥ जिसु परतीति न
आवई भाई सो जीअड़ा जलि जाउ ॥६॥ बहु गुण मेरे
साहिबै भाई हउ तिस कै बलि जाउ ॥ ओहु निरगुणीआरे
पालदा भाई देइ निथावे थाउ ॥ रिजकु स्मबाहे
सासि सासि भाई गूड़ा जा का नाउ ॥ जिसु गुरु साचा
भेटीऐ भाई पूरा तिसु करमाउ ॥७॥ तिसु बिनु घड़ी न
जीवीऐ भाई सरब कला भरपूरि ॥ सासि गिरासि न
विसरै भाई पेखउ सदा हजूरि ॥ साधू संगि मिलाइआ
भाई सरब रहिआ भरपूरि ॥ जिना प्रीति न
लगीआ भाई से नित नित मरदे झूरि ॥८॥ अंचलि लाइ तराइआ
भाई भउजलु दुखु संसारु ॥ करि किरपा नदरि
निहालिआ भाई कीतोनु अंगु अपारु ॥ मनु तनु सीतलु
होइआ भाई भोजनु नाम अधारु ॥ नानक तिसु
सरणागती भाई जि किलबिख काटणहारु ॥९॥१॥
व्याख्या (अर्थ ) :-
सोरठि महला ५ घरु
१ असटपदीआ
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
हे भाई! जिस
परमात्मा ने आप ही सारा जगत पैदा किया है, जो सारे जगत का मूल है, जो सारी शक्तियों का मालिक है, जिसने अपनी वस्तु
(क्षमता) दे के (मनुष्य की) जीवात्मा और शरीर पैदा किए हैं, वह कर्तार (तो)
किसी भी पक्ष से बयान नहीं किया जा सकता। हे भाई उस कर्तार का रूप बताया नहीं जा
सकता। उसे कैसे देखा जाए?
हे भाई! गोबिंद
के रूप गुरु की कीर्ति करनी चाहिए, क्योंकि गुरु से ही सारे जगत के मूल परमात्मा की सूझ पड़
सकती है।1। हे मेरे मन! (हमेशा) हरि भगवान का नाम जपना चाहिए। वह भगवान
अपने सेवक को अपने नाम की दाति देता है। वह सारी दुख-पीड़ाओं को नाश करने वाला है।
रहाउ। हे भाई! जिस
प्रभु के घर में हरेक चीज मौजूद है, जिस के घर में जगत के सारे नौ ही खजाने विद्यमान हैं, जिसके घर में
भंडारे भरे पड़े हैं, उसका मूल्य नहीं
आंका जा सकता। वह सबसे ऊँचा है, वह अगम्य (पहुँच से परे) है, वह बेअंत है। हे भाई! वह प्रभु सारे जीवों की
पालना करता है, वह सदा ही (सब
जीवों की) संभाल करता है। (उसका दर्शन करने के लिए) हे भाई! पूरे गुरु को मिलना
चाहिए, (गुरु ही अपने)
शब्द में जोड़ के परमात्मा के साथ मिला सकने वाला है।2। हे भाई! सदा-स्थिर रहने वाले परमात्मा के चरण हृदय में बसा
के रखने चाहिए, (इस तरह मन के)
भ्रम का (भटकना का) (हरेक किस्म के) डर का नाश हो जाता है। हे भाई! साधु-संगत में
मिल के मन को साफ करना चाहिए (इस तरह) परमात्मा के नाम में (मन का) निवास हो जाता
है। (साधु-संगत की इनायत से) हे भाई! आत्मिक जीवन के पक्ष से अज्ञानता का अंधकार
(मनुष्य के अंदर से) मिट जाता है (हृदय का) कमल पुष्प खिल उठता है। हे भाई! गुरु
के वचन पर चलने से आत्मिक आनंद पैदा होता है। सारे फल गुरु के पास हैं।3। हे भाई! भेद भाव
त्याग देने चाहिए, सबके चरणों की
धूल बन जाना चाहिए। हे भाई! परमात्मा हरेक शरीर में बस रहा है, वह सबके अंग-संग
हो के (सबके कामों को) देखता है (सबकी बातें) सुनता है। हे भाई! जिस दिन परमात्मा
भूल जाए, उस दिन दुखी हो
के (हम) आत्मिक मौत सहेड़ लेते हैं। हे भाई! (ये याद रखो कि) परमात्मा सब कुछ कर
सकने वाला है और (जीवों से) करवा सकने वाला है। परमात्मा में सारी ताकतें मौजूद
हैं।4। हे भाई! (जिस
मनुष्य के हृदय में परमात्मा के) प्यार का कीमती धन मौजूद है, हरि-नाम मौजूद है
(उसके अंदर से) माया के मोह का नाश हो जाता है। हे भाई! उस परमात्मा को (जब) अच्छा
लगे तब वह (जिसको अपने चरणों में) मिला लेता है (उसके) हृदय में उस प्रभु के नाम
का निवास हो जाता है। हे भाई! गुरु के सन्मुख होने से (हृदय का) कमल फूल खिल उठता
है, दिल में (आत्मिक
जीवन की सूझ का) प्रकाश हो जाता है। हे भाई! (गुरु की शरण पड़ने से मनुष्य के अंदर)
परमात्मा की ताकत प्रकट हो जाती है (मनुष्य को समझ आ जाता है कि परमात्मा बेअंत
शक्तियों का मालिक है, और प्रभु की ताकत
से ही) धरती खिली हुई है,
आकाश खिला हुआ
है।5। हे भाई! जिस मनुष्य को पूरे गुरु ने संतोख की दाति दे दी, (उसके अंदर) दिन
रात (प्रभु चरणों का) प्यार बना रहता है, वह मनुष्य सदा (अपनी) जीभ से परमात्मा का नाम जपता रहता है।
(नाम जपने का ये) स्वाद (ये) निशाना (उसके अंदर) सदा कायम रहता है। हे भाई! वह
मनुष्य अपने कानों से (परमात्मा की महिमा) सुन-सुन के आत्मिक जीवन हासिल करता रहता
है, (वह प्रभु-चरणों
में) अटल स्थान की प्राप्ति बनाए रहता है। पर, हे भाई! जिस
मनुष्य को (गुरु पर) ऐतबार नहीं होता उसकी (दुर्भाग्यपूर्ण) जीवात्मा (विकारों
में) जल जाती है (और आत्मिक मौत सहेड़ लेती है)।6। हे भाई! मेरे मालिक प्रभु में बेअंत गुण हैं, मैं उससे
सदके-कुर्बान जाता हूँ। हे भाई! वह मालिक गुणहीन को (भी) पालता है, वह निआसरे मनुष्य
को सहारा देता है। वह मालिक हरेक सांस के साथ रिजक पहुँचाता है, उसका नाम (स्मरण
करने वाले के मन पर प्रेम का) गाढ़ा रंग चढ़ा देता है। हे भाई! जिस मनुष्य को सच्चा
गुरु मिल जाता है (उसको प्रभु मिल जाता है) उसकी किस्मत जाग जाती है।7। हे भाई! वह
परमात्मा सारी ही ताकतों से भरपूर है, उस (की याद) के बिना एक घड़ी भी (मनुष्य का) आत्मिक जीवन
कायम नहीं रह सकता। हे भाई! मैं तो उस परमात्मा को अपने अंग-संग बसता देखता हूँ, मुझे वह खाते हुए
सांस लेते हुए कभी भी नहीं भूलता। हे भाई! जिस मनुष्य को परमात्मा ने गुरु की
संगति में मिला दिया, उसे वह परमात्मा
हर जगह मौजूद दिखाई देने लग जाता है। पर, हे भाई! जिनके अंदर परमात्मा का प्यार पैदा नहीं होता, वह सदा चिंतातुर
हो-हो के आत्मिक मौत मरता रहता है।8। हे भाई! (शरण में आए मनुष्य को) अपने पल्लू से लगा के
परमात्मा खुद इस दुख-रूपी संसार-समुंदर से पार लंघा लेता है। प्रभु (उस पर) कृपा
करके (उसको) मेहर की निगाह से देखता है, उसका बेअंत पक्ष करता है। हे भाई! मनुष्य का मन ठंडा हो
जाता है, शरीर शांत हो
जाता है, वह (अपने आत्मिक
जीवन के लिए) नाम की खुराक़ (खाता है), नाम का सहारा लेता है। हे नानक! (कह:) हे भाई! उस परमात्मा
की शरण पड़ो, जो सारे पाप काट
सकता है।9।1।
वाहिगुरु जी का खालसा वाहिगुरु जी की फतेह
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