आज का फरमान (मुखवाक, हिंदी में )
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आज का फरमान (मुखवाक
)
{श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर , तिथि:- 07.04.2021,
दिन बुधवार, पृष्ठ – 731 }
सूही महला ४ ॥
हरि हरि नामु भजिओ पुरखोतमु सभि बिनसे दालद दलघा ॥ भउ जनम
मरणा मेटिओ गुर सबदी हरि असथिरु सेवि सुखि समघा ॥१॥ मेरे मन भजु राम नाम अति पिरघा
॥ मै मनु तनु अरपि धरिओ गुर आगै सिरु वेचि लीओ मुलि महघा ॥१॥ रहाउ॥ नरपति राजे रंग
रस माणहि बिनु नावै पकड़ि खड़े सभि कलघा ॥ धरम राइ सिरि डंडु लगाना फिरि पछुताने हथ
फलघा ॥२॥ हरि राखु राखु जन किरम तुमारे सरणागति पुरख प्रतिपलघा ॥ दरसनु संत देहु
सुखु पावै प्रभ लोच पूरि जनु तुमघा ॥३॥ तुम समरथ पुरख वडे प्रभ सुआमी मो कउ कीजै
दानु हरि निमघा ॥ जन नानक नामु मिलै सुखु पावै हम नाम विटहु सद घुमघा ॥४॥२॥
व्याख्या (अर्थ ):-
हे भाई! जिस
मनुष्य ने परमात्मा का नाम जपा है, हरि उत्तम पुरुख
को जपा है, उसके सारे दरिद्र, दलों के दल नाश
हो गए हैं। गुरु के शब्द में जुड़ के उस मनुष्य के जनम-मरण का डर भी खत्म कर लिया।
सदा-स्थिर रहने वाले परमात्मा की सेवा-भक्ति करके वह आनंद में लीन हो गया।1। हे मेरे मन!
सदा परमात्मा का अति प्यारा नाम स्मरण किया कर। हे भाई! मैंने अपना सिर महँगे
मूल्य पर बेच दिया है (मैंने सिर के बदले में कीमती हरि-नाम ले लिया है)।1। रहाउ। हे भाई!
दुनिया के राजे-महाराजे (माया के) रंग-रस भोगते रहते हैं, उन सबको आत्मिक
मौत पकड़ कर आगे लगा लेती है। जब उन्हें किए कर्मों का फल मिलता है, जब उनके सिर पर
परमात्मा का डंडा बजता है, तब पछताते हैं।2। हे हरि! हे
पालनहार सर्व-व्यापक! हम तेरे (पैदा किए हुए) निमाणे से जीव हैं, हम तेरी शरण आए
हैं, तू खुद (अपने) सेवकों की रक्षा कर। हे प्रभु! मैं तेरा दास
हूँ, दास की तमन्ना पूरी कर, इस दास को संत
जनों की संगति बख्श (ता कि ये दास) आत्मिक आनंद प्राप्त कर सके।3। हे प्रभु! हे
सबसे बड़े मालिक! तू सारी ताकतों का मालिक पुरुख है। मुझे एक छिन के वास्ते ही अपने
नाम का दान दे। हे दास नानक! (कह:) जिसको प्रभु का नाम प्राप्त होता है, वह आनंद लेता है।
मैं सदा हरि-नाम से सदके हूँ।4।2।
वाहेगुरु जी का
खालसा
वाहेगुरु जी की
फतेह ॥
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