आज का फरमान (मुखवाक, हिंदी में ), hukamnama from Golden Temple, 04.04.21

  आज का फरमान (मुखवाक, हिंदी में )

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आज का फरमान (मुखवाक )

{श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर , तिथि:- 04.04.2021,

 दिन  रविवार, पृष्ठ – 722 }

 

तिलंग मः १ ॥

इआनड़ीए मानड़ा काइ करेहि ॥ आपनड़ै घरि हरि रंगो की न माणेहि ॥ सहु नेड़ै धन कमलीए बाहरु किआ ढूढेहि ॥ भै कीआ देहि सलाईआ नैणी भाव का करि सीगारो ॥ ता सोहागणि जाणीऐ लागी जा सहु धरे पिआरो ॥१॥ इआणी बाली किआ करे जा धन कंत न भावै ॥ करण पलाह करे बहुतेरे सा धन महलु न पावै ॥ विणु करमा किछु पाईऐ नाही जे बहुतेरा धावै ॥ लब लोभ अहंकार की माती माइआ माहि समाणी ॥ इनी बाती सहु पाईऐ नाही भई कामणि इआणी ॥२॥ जाइ पुछहु सोहागणी वाहै किनी बाती सहु पाईऐ ॥ जो किछु करे सो भला करि मानीऐ हिकमति हुकमु चुकाईऐ ॥ जा कै प्रेमि पदारथु पाईऐ तउ चरणी चितु लाईऐ ॥ सहु कहै सो कीजै तनु मनो दीजै ऐसा परमलु लाईऐ ॥ एव कहहि सोहागणी भैणे इनी बाती सहु पाईऐ ॥३॥ आपु गवाईऐ ता सहु पाईऐ अउरु कैसी चतुराई ॥ सहु नदरि करि देखै सो दिनु लेखै कामणि नउ निधि पाई ॥ आपणे कंत पिआरी सा सोहागणि नानक सा सभराई ॥ ऐसै रंगि राती सहज की माती अहिनिसि भाइ समाणी ॥ सुंदरि साइ सरूप बिचखणि कहीऐ सा सिआणी ॥४॥२॥४॥

 

व्याख्या (अर्थ ):- 

                        हे अति अंजान जिंदे! तू इतना अनुचित गुमान क्यों करती है? परमात्मा तेरे अपने ही हृदय-घर में है, तू उस (के मिलाप) का आनंद क्यों नहीं लेती? हे भोली जीव-स्त्री! पति-प्रभु (तेरे अंदर ही तेरे) नजदीक बस रहा है, तू (जंगल आदिक) बाहरी संसार क्यों तलाशती फिरती है? (अगर तूने उसका दीदार करना चाहती है, तो अपने ज्ञान की) आँखों में (प्रभु के) डर-अदब (के अंजन) की सलाईयां डाल, प्रभु के प्यार का हार-श्रृंगार कर। जीव-स्त्री तब ही सोहाग-भाग वाली और प्रभु-चरणों में जुड़ी हुई समझी जाती है, जब प्रभु-पति उससे प्यार करे।1। (पर) नासमझ जीव-स्त्री भी क्या कर सकती है यदि वह जीव-स्त्री प्रभु-पति को अच्छी ना लगे? ऐसी जीव-स्त्री भले कितने ही करुणा प्रलाप करती फिरे, वह प्रभु-पति का महल-गृह नहीं पा सकती। (दरअसल बात ये है कि) जीव-स्त्री भले ही कितनी ही दौड़-भाग करती रहे, प्रभु की मेहर के बिना कुछ भी हासिल नहीं होता। यदि जीव-स्त्री जीभ के चस्के लालच और अहंकार (आदि) में ही मस्त रहे, और सदा माया (के मोह) में डूबी रहे, तो इन बातों से पति-प्रभु नहीं मिलता। वह जीव-स्त्री बेसमझ ही रही (जो विकारों में मस्त रहके और फिर भी समझे कि वह पति-प्रभु को प्रसन्न कर सकती है)।2। (जिनको पति-प्रभु मिल गया है, बेशक) उन सोहाग-भाग वालियों को जा के पूछ के देखो कि किन बातों से पति-प्रभु मिलता है, (वे यही उक्तर देती हैं कि) चालाकी और जबरदस्ती त्याग दो, जो कुछ प्रभु करता है उसको अच्छा समझ के (सिर माथे पर) मानो, जिस प्रभु के प्रेम के सदका नाम-वस्तु मिलती है उसके चरणों में मन जोड़ो, पति-प्रभु जो हुक्म करता है वह करो, अपना शरीर और मन उसके हवाले करो, बस! ये सुगंधि (जिंद के लिए) बरतो। सोहाग-भाग वाली सही कहतीं हैं कि हे बहन! इन बातों से ही पति-प्रभु मिलता है।3। पति-प्रभु तब ही मिलता है जब स्वै भाव दूर करें। इसके बिना किया गया और कोई उद्यम व्यर्थ है, चालाकी है। (जिंदगी का) वह दिन सफल जानो जब पति-प्रभु मेहर की निगाह से देखे, (जिस) जीव-स्त्री (की ओर मेहर की) निगाह करता है वह मानो नौ खजाने पा लेती है। हे नानक! जो जीव-स्त्री पति-प्रभु को प्यारी है वह सोहाग-भाग वाली है वह (जगत-) परिवार में आदर पाती है। जो प्रभु के प्यार-रंग में रंगी रहती है, जो अडोलता में मस्त रहती है, जो दिन-रात प्रभु के प्रेम-रंग में मगन रहती है, वही सोहानी है सुंदर रूप वाली है तीक्ष्ण बुद्धि वाली है और समझदार कही जाती है।4।2।4।

 

वाहेगुरु जी का खालसा

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