आज का फरमान (मुखवाक, हिंदी में ), hukamnama from Golden Temple, 23.04.21

 आज का फरमान (मुखवाक, हिंदी में )


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आज का फरमान (मुखवाक )

{श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर , तिथि:- 23.04.2021,

दिन शुक्रवार, पृष्ठ – 647 }

 

सलोकु मः ३ ॥

परथाइ साखी महा पुरख बोलदे साझी सगल जहानै ॥ गुरमुखि होइ सु भउ करे आपणा आपु पछाणै ॥ गुर परसादी जीवतु मरै ता मन ही ते मनु मानै ॥ जिन कउ मन की परतीति नाही नानक से किआ कथहि गिआनै ॥१॥ मः ३ ॥ गुरमुखि चितु न लाइओ अंति दुखु पहुता आइ ॥ अंदरहु बाहरहु अंधिआं सुधि न काई पाइ ॥ पंडित तिन की बरकती सभु जगतु खाइ जो रते हरि नाइ ॥ जिन गुर कै सबदि सलाहिआ हरि सिउ रहे समाइ ॥ पंडित दूजै भाइ बरकति न होवई ना धनु पलै पाइ ॥ पड़ि थके संतोखु न आइओ अनदिनु जलत विहाइ ॥ कूक पूकार न चुकई ना संसा विचहु जाइ ॥ नानक नाम विहूणिआ मुहि कालै उठि जाइ ॥२॥ पउड़ी ॥ हरि सजण मेलि पिआरे मिलि पंथु दसाई ॥ जो हरि दसे मितु तिसु हउ बलि जाई ॥ गुण साझी तिन सिउ करी हरि नामु धिआई ॥ हरि सेवी पिआरा नित सेवि हरि सुखु पाई ॥ बलिहारी सतिगुर तिसु जिनि सोझी पाई ॥१२॥

 

व्याख्या (अर्थ ):-

सलोकु मः ३ ॥

महापुरुष किसी के संबंध में शिक्षा के वचन बोलते हैं (पर वह शिक्षा) सारे संसार के लिए सांझे होते हैं, जो मनुष्य सतिगुरु के सन्मुख होते हैं, वह (सुन के) प्रभु का डर (हृदय में धारण) करते हैं, और अपने आप की खोज करते हैं (आत्म-विश्लेषण करते हैं)। सतिगुरु की कृपा से वे संसार में कार्य-व्यवहार करते हुए भी माया से उदास रहते हैं, और उनका मन अपने आप में पतीजा रहता है (बाहर भटकने से हट जाता है)। हे नानक! जिस का मन पतीजा नहीं, उनको ज्ञान की बातें करने का कोई लाभ नहीं होता।1। मः ३ ॥ हे पंडित! जिस मनुष्यों ने सतिगुरु के सन्मुख हो के (हरि में) मन नहीं जोड़ा, उन्हें आखिर दुख ही होता है। उन अंदर व बाहर के अंधों को कोई समझ नहीं आती। (पर) हे पंडित! जो मनुष्य हरि के नाम में रंगे हुए हैं, जिन्होंने सतिगुरु के शब्द के द्वारा महिमा की है और हरि में लीन हैं, उनकी कमाई की इनायत सारा संसार खाता है। हे पण्डित! माया के मोह में (फसे रहने से) इनायत नहीं हो सकती (आत्मिक जीवन फलता-फूलता नहीं) और ना ही नाम-धन मिलता है; पढ़-पढ़ के थक जाते हैं, पर संतोष नहीं आता और हर वक्त (उम्र) जलते हुए गुजरती है; उनकी गिला-गुजारिश खत्म नहीं होती और मन में से चिन्ता नहीं जाती। हे नानक! नाम से वंचित रहने के कारण मनुष्य काला मुँह ले के ही (संसार से) उठ जाता है।2। पउड़ी ॥ हे प्यारे हरि! मुझे गुरमुख मिला, जिनको मिल के मैं तेरा राह पूछूँ। जो मनुष्य मुझे हरि मित्र (की खबर) बताए, मैं उससे सदके हूँ। उनके साथ मैं गुणों की सांझ डालूँ और हरि का नाम स्मरण करूँ। मैं सदा प्यारे हरि को स्मरण करूँ और स्मरण करके सुख लूँ। मैं सदके हूँ उस सतिगुरु से जिसने (परमात्मा की) समझ बख्शी है।12।

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