आज का फरमान (मुखवाक, हिंदी में )
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आज का फरमान (मुखवाक
)
{श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर , तिथि:- 26.04.2021,
दिन सोमवार, पृष्ठ – 721 }
तिलंग महला १ घरु ३
ੴ सतिगुर
प्रसादि ॥
इहु तनु माइआ पाहिआ पिआरे लीतड़ा लबि रंगाए ॥ मेरै कंत न
भावै चोलड़ा पिआरे किउ धन सेजै जाए ॥१॥ हंउ कुरबानै जाउ मिहरवाना हंउ कुरबानै जाउ ॥
हंउ कुरबानै जाउ तिना कै लैनि जो तेरा नाउ ॥ लैनि जो तेरा नाउ तिना कै हंउ सद
कुरबानै जाउ ॥१॥ रहाउ॥ काइआ रंङणि जे थीऐ पिआरे पाईऐ नाउ मजीठ ॥ रंङण वाला जे रंङै
साहिबु ऐसा रंगु न डीठ ॥२॥ जिन के चोले रतड़े पिआरे कंतु तिना कै पासि ॥ धूड़ि तिना
की जे मिलै जी कहु नानक की अरदासि ॥३॥ आपे साजे आपे रंगे आपे नदरि करेइ ॥ नानक
कामणि कंतै भावै आपे ही रावेइ ॥४॥१॥३॥
व्याख्या (अर्थ):-
तिलंग महला १ घरु ३
ੴ सतिगुर
प्रसादि ॥
जिस
जीव-स्त्री के इस शरीर को माया (के मोह) की लाग लगी हो, और फिर उसने इसको लालच से रंगा लिया हो, वह जीव-स्त्री पति-प्रभु के चरणों में नहीं पहुँच सकती, क्योंकि (जिंद का) ये चोला (ये शरीर, ये जीवन) पति-प्रभु को पसंद नहीं आता।1। हे मेहरवान प्रभु!
मैं कुर्बान जाता हूँ मैं सदके जाता हूँ, मैं वारने जाता हूँ उनसे, जो तेरा नाम स्मरण करते हैं। जो लोग तेरा नाम लेते हैं, मैं उनसे सदा कुर्बान जाता हूँ।1। रहाउ। (पर, हाँ!) अगर ये शरीर (लिलारी का) बरतन बन जाए, और हे सज्जन! इस में मजीठ जैसे पक्के रंग वाला प्रभु का
नाम-रंग पाया जाए, फिर मालिक-प्रभु खुद लिलारी (बन के जीव-स्त्री के मन को)
रंग (में डुबो) दे, तो ऐसा रंग चढ़ता है जो कभी पहले देखा ना हो।2। हे प्यारे
(सज्जन!) जिस जीव-स्त्रीयों के (शरीर-) चोले (जीवन नाम-रंग से) रंगे हुए हैं, पति-प्रभु (सदा) उनके पास (बसता) है। हे सज्जन! नानक की ओर
से उनके पास विनती कर, भला नानक को भी उनके चरणों की धूल मिल जाए।3। हे नानक! जिस
जीव-स्त्री पर प्रभु खुद मेहर की नजर करता है उसको वह आप ही सँवारता है खुद ही
(नाम का) रंग चढ़ाता है, वह जीव-स्त्री पति-प्रभु को प्यारी लगती है, उसको प्रभु खुद ही अपने चरणों में जोड़ता है।4।1।3।
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वाहेगुरु
जी का खालसा
वाहेगुरु
जी की फतेह ॥
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