आज का फरमान (मुखवाक, हिंदी में ), hukamnama from Golden Temple, 08.04.21

   आज का फरमान (मुखवाक, हिंदी में )

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आज का फरमान (मुखवाक )

{श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर , तिथि:- 08.04.2021,

 दिन  गुरूवार, पृष्ठ – 662 }

 

धनासरी महला १ ॥

काइआ कागदु मनु परवाणा ॥ सिर के लेख न पड़ै इआणा ॥ दरगह घड़ीअहि तीने लेख ॥ खोटा कामि न आवै वेखु ॥१॥ नानक जे विचि रुपा होइ ॥ खरा खरा आखै सभु कोइ ॥१॥ रहाउ॥ कादी कूड़ु बोलि मलु खाइ ॥ ब्राहमणु नावै जीआ घाइ ॥ जोगी जुगति न जाणै अंधु ॥ तीने ओजाड़े का बंधु ॥२॥ सो जोगी जो जुगति पछाणै ॥ गुर परसादी एको जाणै ॥ काजी सो जो उलटी करै ॥ गुर परसादी जीवतु मरै ॥ सो ब्राहमणु जो ब्रहमु बीचारै ॥ आपि तरै सगले कुल तारै ॥३॥ दानसबंदु सोई दिलि धोवै ॥ मुसलमाणु सोई मलु खोवै ॥ पड़िआ बूझै सो परवाणु ॥ जिसु सिरि दरगह का नीसाणु ॥४॥५॥७॥

 

व्याख्या (अर्थ ):- 

धनासरी महला १ ॥

                      ये मनुष्य का शरीर (जैसे) एक काग़ज़ है, मनुष्य का मन (शरीर रूपी काग़ज़ पर लिखा हुआ) दरगाही परवाना है। पर मूर्ख मनुष्य अपने माथे के लेख नहीं पढ़ता (भाव, ये समझने का प्रयत्न नहीं करता कि उसके पिछले किए कर्मों के अनुसार किस तरह के संस्कार-लेख उसके मन में मौजूद हैं जो उसे अब और प्रेरणा कर रहे हैं)। माया के तीनों गुणों के असर में रह के किए हुए कर्मों के संस्कार ईश्वरीय नियमों के अनुसार हरेक मनुष्य के मन में उकर जाते हैं। पर हे भाई! देख (जैसे कोई खोटा सिक्का काम नहीं आता, वैसे ही खोटे किए हुए काम का) खोटा-संस्कार वाला लेख भी काम नहीं आता।1। हे नानक! अगर रुपए आदि सिक्के में चाँदी हो तो हरेक उसे खरा सिक्का कहता है (इसी तरह जिस मन में पवित्रता हो, उसे खरा कहा जाता है)।1। रहाउ। काज़ी (जो एक तरफ तो इस्लाम धर्म का नेता है और दूसरी तरफ हाकिम भी है, रिश्वत की खातिर शरई कानून के बारे में) झूठ बोल के हराम का माल (रिश्वत) खाता है। ब्राहमण (करोड़ों शूद्र कहलाते) लोगों को दुखी कर-कर के तीर्थ-स्नान भी करता है। जोगी भी अंधा है और जीवन की विधि नहीं जानता। (ये तीनों अपनी ओर से धार्मिक नेता हैं, पर) इन तीनों के ही अंदर आत्मिक जीवन के पक्ष से सुन्नम-सूना है।2। असल जोगी वह है जो जीवन की विधि समझता है और गुरु की कृपा से एक परमात्मा के साथ गहरी सांझ डालता है। काजी वह है जो तवज्जो को हराम के माल से मोड़ता है जो गुरु की किरपा से दुनिया में रहते हुए दुनियावी ख्वाइशों से पलटता है। ब्राहमण वह है जो सर्व-व्यापक प्रभु में तवज्जो जोड़ता है, इस तरह खुद भी संसार-समुंदर में से पार लांघता है और अपनी सारी कुलों को भी लंघा लेता है।3। वही मनुष्य बुद्धिमान है जो अपने दिल में टिकी हुई बुराईयों को दूर करता है। वही मुसलमान है जो मन में से विकारों की मैल का नाश करता है। वही विद्वान है जो जीवन का सही रास्ता समझता है, उसके माथे पर दरगाह का टीका लगता है वही प्रभु की हजूरी में स्वीकार होता है।4।

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