आज का फरमान (मुखवाक, हिंदी में ), hukamnama from Golden Temple, 20.04.21

 आज का फरमान (मुखवाक, हिंदी में )


 ਪੰਜਾਬੀ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿੱਚ ਹੁਕੱਮਨਾਮਾ ਪੜ੍ਹਨ ਲਈ ਇੱਥੇ ਕਲਿਕ ਕਰੋ

To read this page in English click here

आज का फरमान (मुखवाक), श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर , तिथि:- 20.04.2021, दिन मंगलवार, पृष्ठ – 690 }

धनासरी छंत महला ४ घरु १

सतिगुर प्रसादि ॥

हरि जीउ क्रिपा करे ता नामु धिआईऐ जीउ ॥ सतिगुरु मिलै सुभाइ सहजि गुण गाईऐ जीउ ॥ गुण गाइ विगसै सदा अनदिनु जा आपि साचे भावए ॥ अहंकारु हउमै तजै माइआ सहजि नामि समावए ॥ आपि करता करे सोई आपि देइ त पाईऐ ॥ हरि जीउ क्रिपा करे ता नामु धिआईऐ जीउ ॥१॥ अंदरि साचा नेहु पूरे सतिगुरै जीउ ॥ हउ तिसु सेवी दिनु राति मै कदे न वीसरै जीउ ॥ कदे न विसारी अनदिनु सम्हारी जा नामु लई ता जीवा ॥ स्रवणी सुणी त इहु मनु त्रिपतै गुरमुखि अम्रितु पीवा ॥ नदरि करे ता सतिगुरु मेले अनदिनु बिबेक बुधि बिचरै ॥ अंदरि साचा नेहु पूरे सतिगुरै ॥२॥ सतसंगति मिलै वडभागि ता हरि रसु आवए जीउ ॥ अनदिनु रहै लिव लाइ त सहजि समावए जीउ ॥ सहजि समावै ता हरि मनि भावै सदा अतीतु बैरागी ॥ हलति पलति सोभा जग अंतरि राम नामि लिव लागी ॥ हरख सोग दुहा ते मुकता जो प्रभु करे सु भावए ॥ सतसंगति मिलै वडभागि ता हरि रसु आवए जीउ ॥३॥ दूजै भाइ दुखु होइ मनमुख जमि जोहिआ जीउ ॥ हाइ हाइ करे दिनु राति माइआ दुखि मोहिआ जीउ ॥ माइआ दुखि मोहिआ हउमै रोहिआ मेरी मेरी करत विहावए ॥ जो प्रभु देइ तिसु चेतै नाही अंति गइआ पछुतावए ॥ बिनु नावै को साथि न चालै पुत्र कलत्र माइआ धोहिआ ॥ दूजै भाइ दुखु होइ मनमुखि जमि जोहिआ जीउ ॥४॥ करि किरपा लेहु मिलाइ महलु हरि पाइआ जीउ ॥ सदा रहै कर जोड़ि प्रभु मनि भाइआ जीउ ॥ प्रभु मनि भावै ता हुकमि समावै हुकमु मंनि सुखु पाइआ ॥ अनदिनु जपत रहै दिनु राती सहजे नामु धिआइआ ॥ नामो नामु मिली वडिआई नानक नामु मनि भावए ॥ करि किरपा लेहु मिलाइ महलु हरि पावए जीउ ॥५॥१॥

 

व्याख्या (अर्थ ):- 

धनासरी छंत महला ४ घरु १

सतिगुर प्रसादि ॥

              हे भाई! अगर परमात्मा खुद कृपा करे, तो उसका नाम स्मरण किया जा सकता है। अगर गुरु मिल जाए, तो (प्रभु के) प्रेम में (लीन हो के) आत्मिक अडोलता में (टिक के) परमात्मा के गुण गा सकते हैं। (परमात्मा के) गुण गा के (मनुष्य) सदा हर वक्त खिला रहता है, (पर ये तब ही हो सकता है) जब सदा कायम रहने वाले परमात्मा को स्वयं (ये मेहर करनी) पसंद आए। (गुणगान की इनायत से मनुष्य) अहंकार, अहम्, माया (का मोह) त्याग देता है, और आत्मिक अडोलता में हरि-नाम में लीन हो जाता है। (नाम-जपने की दाति) वह परमात्मा खुद ही देता है, जब वह (ये दाति) देता है तब ही मिलती है। हे भाई! परमात्मा कृपा करे, तो उसका नाम स्मरण किया जा सकता है।1। हे भाई! पूरे गुरु के द्वारा (मेरे) मन में (परमात्मा से) सदा-स्थिर रहने वाला प्यार बन गया है। (गुरु की कृपा से) मैं उस (प्रभु) को दिन-रात स्मरण करता रहता हूँ, मुझे वह कभी नहीं भूलता। मैं उसे कभी भी भुलाता नहीं, मैं हर वक्त (उस प्रभु को) हृदय में बसाए रखता हूँ। जब मैं उसका नाम जपता हूँ, तब मुझे आत्मिक जीवन प्राप्त होता है। जब मैं अपने कानों से (हरि नाम) सुनता हूँ तब (मेरा) ये मन (माया की ओर से) अघा जाता है। हे भाई! मैं गुरु की शरण पड़ कर आत्मिक जीवन देने वाला नाम-जल पीता रहता हूँ (जब प्रभु मनुष्य पर मेहर की) निगाह करता है, तब (उसको) गुरु मिलाता है (तब हर समय उस मनुष्य के अंदर) अच्छे-बुरे की परख कर सकने वाली अक्ल काम करती है। हे भाई! पूरे गुरु की कृपा से मेरे अंदर (प्रभु से) सदा कायम रहने वाला प्यार बन गया है।2। (जिस मनुष्य को) बड़ी किस्मत से साधु-संगत प्राप्त हो जाती है, तो उसको परमात्मा के नाम का स्वाद आने लग जाता है, वह हर वक्त (प्रभु की याद में) तवज्जो जोड़े रखता है, आत्मिक अडोलता में टिका रहता है। जब मनुष्य आत्मिक अडोलता में लीन हो जाता है, तब परमात्मा को प्यारा लगने लग जाता है, तब माया के मोह से परे लांघ जाता है, निर्लिप हो जाता है। इस लोक में, परलोक में, सारे संसार में उसकी शोभा होने लग जाती है, परमात्मा के नाम में उसकी लगन लगी रहती है। वह मनुष्य खुशी-ग़मी दोनों से स्वतंत्र हो जाता है, जो कुछ परमात्मा करता है वह उसको अच्छा लगने लगता है। हे भाई! जब बड़ी किस्मत से किसी मनुष्य को साधु-संगत प्राप्त होती है तब उसको परमात्मा के नाम का रस आने लग पड़ता है।3। हे भाई! अपने मन के पीछे चलने वाले मनुष्य को आत्मिक मौत ने सदा अपनी निगाह तले रखा हुआ है, माया के मोह के कारण उसे सदा दुख व्यापता है। वह दिन रात हाय हायकरता रहता है, माया के दुख में फंसा रहता है। वह सदा माया के दुख में ग्रसा हुआ अहंम् के कारण क्रोधातुर भी रहता है। उसकी सारी उम्र मेरी माया मेरी मायाकरते हुए बीत जाती है। जो परमात्मा (उसे सब कुछ) दे रहा है उस परमात्मा को वह कभी याद नहीं करता, आखिर में जब यहाँ से चलता है तो पछताता है। पुत्र, स्त्री (आदि) हरि-नाम के बिना कोई (मनुष्य के) साथ नहीं जाता, दुनिया की माया उसे छल लेती है। हे भाई! अपने मन के पीछे चलने वाले मनुष्य को आत्मिक मौत ग्रसे रखती है, माया के कारण उस को सदा दुख व्यापता है।4 । हे हरि! जिस मनुष्य को तू (अपनी) कृपा करके (अपने चरणों में) जोड़ लेता है, उसको तेरी हजूरी प्राप्त हो जाती है। (हे भाई! वह मनुष्य प्रभु की हजूरी में) सदा हाथ जोड़ के टिका रहता है, उसको (अपने) मन में प्रभु प्यारा लगता है। जब मनुष्य को अपने मन में प्रभु प्यारा लगने लगता है, तब वह प्रभु की रजा में टिक जाता है, और हुक्म मान के आत्मिक आनंद लेता है। वह मनुष्य हर वक्त दिन रात परमात्मा का नाम जपता रहता है, आत्मिक अडोलता में टिक के वह हरि-नाम स्मरण करता रहता है। हे नानक! परमात्मा का (हर वक्त) नाम-स्मरण करने से (ही) उसको बड़ाई मिली रहती है, प्रभु का नाम (उसको अपने) मन में प्यारा लगता है। हे हरि! (अपनी) कृपा करके (जिस मनुष्य को तू अपने चरणों में) जोड़ लेता है, उसको तेरी हजूरी प्राप्त हो जाती है।5।1।

 ਪੰਜਾਬੀ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿੱਚ ਹੁਕੱਮਨਾਮਾ ਪੜ੍ਹਨ ਲਈ ਇੱਥੇ ਕਲਿਕ ਕਰੋ

To read this page in English click here


वाहेगुरु जी का खालसा

वाहेगुरु जी की फतेह

 



Post a Comment

Previous Post Next Post