आज का फरमान (मुखवाक, हिंदी में )
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आज का फरमान (मुखवाक
)
{श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर , तिथि:- 22.04.2021,
दिन गुरूवार, पृष्ठ – 645 }
सलोकु मः ३ ॥
सतिगुर ते जो मुह फिरे से
बधे दुख सहाहि ॥ फिरि फिरि मिलणु न पाइनी जमहि तै मरि जाहि ॥ सहसा रोगु न छोडई दुख
ही महि दुख पाहि ॥ नानक नदरी बखसि लेहि सबदे मेलि मिलाहि ॥१॥ मः ३ ॥ जो
सतिगुर ते मुह फिरे तिना ठउर न ठाउ ॥ जिउ छुटड़ि घरि घरि फिरै दुहचारणि बदनाउ ॥
नानक गुरमुखि बखसीअहि से सतिगुर मेलि मिलाउ ॥२॥ पउड़ी ॥ जो सेवहि सति मुरारि
से भवजल तरि गइआ ॥ जो बोलहि हरि हरि नाउ तिन जमु छडि गइआ ॥ से दरगह पैधे जाहि जिना
हरि जपि लइआ ॥ हरि सेवहि सेई पुरख जिना हरि तुधु मइआ ॥ गुण गावा पिआरे नित गुरमुखि
भ्रम भउ गइआ ॥७॥
व्याख्या (अर्थ ):-
सलोकु मः ३ ॥
जो मनुष्य सतिगुरु की ओर
से मनमुख हैं, वह (अंत में) बँधे दुख सहते हैं, प्रभु
को मिल नहीं सकते, बार-बार पैदा होते मरते रहते हैं; उन्हें
चिन्ता का रोग कभी नहीं छोड़ता, सदा दुखी ही रहते है। हे नानक!
कृपा-दृष्टि वाला प्रभु अगर उन्हें बख्श ले तो सतिगुरु के शब्द के द्वारा उस में
मिल जाते हैं।1। मः ३ ॥ जो मनुष्य सतिगुरु से मनमुख हैं उनका ना
ठौर ना ठिकाना; वे व्यभचारिन त्याग हुई स्त्री की भांति
हैं, जो घर-घर
में बदनाम होती फिरती है। हे नानक! जो गुरु के सन्मुख हो के बख्शे जाते हैं, वे
सतिगुरु की संगति में मिल जाते हैं।2। पउड़ी ॥ जो मनुष्य सच्चे हरि को सेवते हैं, वे
संसार समुंदर को पार कर लेते हैं; जो मनुष्य हरि का नाम स्मरण करते हैं, उन्हें
जम छोड़ जाता है; जिन्होंने हरि का नाम जपा है, उन्हें
दरगाह में आदर मिलता है; (पर) हे हरि! जिस पर तेरी मेहर होती है, वही
मनुष्य तेरी भक्ति करते हैं। सतिगुरु के सन्मुख हो के भ्रम और डर दूर हो जाते हैं, (मेहर
कर) हे प्यारे! मैं भी सदा तेरे गुण गाऊँ।7।
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वाहेगुरु जी का खालसा
वाहेगुरु जी की फतेह ॥
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