आज का फरमान (मुखवाक
)
{श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर , तिथि:- 15.03.2021,
दिन सोमवार, पृष्ठ – 684 }
धनासरी महला ५ ॥
त्रिपति भई सचु
भोजनु खाइआ ॥ मनि तनि रसना नामु धिआइआ ॥१॥ जीवना हरि जीवना ॥ जीवनु हरि जपि
साधसंगि ॥१॥ रहाउ॥ अनिक प्रकारी बसत्र ओढाए ॥ अनदिनु कीरतनु हरि गुन गाए ॥२॥ हसती
रथ असु असवारी ॥ हरि का मारगु रिदै निहारी ॥३॥ मन तन अंतरि चरन धिआइआ ॥ हरि सुख
निधान नानक दासि पाइआ ॥४॥२॥५६॥
व्याख्या (अर्थ ) :-
धनासरी महला ५ ॥
हे भाई! जिस मनुष्य ने
अपने मन में, हृदय में, जीभ से परमात्मा का नाम स्मरणा शुरू कर
दिया, जिसने
सदा-स्थिर हरि नाम (की) खुराक खानी शुरू कर दी उसको (माया की तृष्णा की ओर से)
शांति आ जाती है।1। हे भाई! साधु-संगत में (बैठ के) परमात्मा का नाम जपा करो- यही
है असल जीवन, यही है असल जिंदगी।1। रहाउ। जो मनुष्य हर
वक्त परमात्मा की महिमा करता है, प्रभु के गुण गाता है, उसने
(मानो) कई किस्मों के (रंग-बिरंगे) कपड़े पहन लिए हैं (और वह इन सुंदर पोशाकों का
आनंद ले रहा है)।2। हे भाई! जो मनुष्य अपने हृदय में परमात्मा के मिलाप का राह
देखता रहता है, वह (जैसे) हाथी, रथों, घोड़ों
की सवारी (के सुख मजे ले रहा है)।3। हे नानक! जिस मनुष्य ने अपने मन में हृदय में
परमात्मा के चरणों का ध्यान धरना शुरू कर दिया है, उस दास ने सुखों के खजाने प्रभु को पा
लिया है।4।2।56।
वाहेगुरु
जी का खालसा वाहेगुरु जी की फतेह ॥
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