आज का फरमान (मुखवाक
)
{श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर , तिथि:- 13.03.2021,
दिन शनिवार, पृष्ठ – 670 }
धनासरी महला ४ ॥
मेरे साहा मै हरि दरसन
सुखु होइ ॥ हमरी बेदनि तू जानता साहा अवरु किआ जानै कोइ ॥ रहाउ॥ साचा साहिबु सचु
तू मेरे साहा तेरा कीआ सचु सभु होइ ॥ झूठा किस कउ आखीऐ साहा दूजा नाही कोइ ॥१॥
सभना विचि तू वरतदा साहा सभि तुझहि धिआवहि दिनु राति ॥ सभि तुझ ही थावहु मंगदे
मेरे साहा तू सभना करहि इक दाति ॥२॥ सभु को तुझ ही विचि है मेरे साहा तुझ ते बाहरि
कोई नाहि ॥ सभि जीअ तेरे तू सभस दा मेरे साहा सभि तुझ ही माहि समाहि ॥३॥सभना की तू
आस है मेरे पिआरे सभि तुझहि धिआवहि मेरे साह ॥ जिउ भावै तिउ रखु तू मेरे पिआरे सचु
नानक के पातिसाह ॥४॥७॥१३॥
व्याख्या (अर्थ ) :-
धनासरी महला ४ ॥
हे
मेरे पातशाह! (मेहर कर) मुझे तेरे दर्शनों का आनंद प्राप्त हो जाए। हे मेरे
पातशाह! मेरे दिल की पीड़ा को तू ही जानता है। कोई और क्या जान सकता है?। रहाउ। हे मेरे पातशाह! तू सदा कायम रहने वाला मालिक है, तू अटल है। जो कुछ तू करता है, उसमें कोई भी कमी खामी नहीं है। हे
पातशाह! (सारे संसार में तेरे बिना) और कोई नहीं है (इस वास्ते) किसी को झूठा नहीं
कहा जा सकता।1। हे मेरे पातशाह! तू सब जीवों में मौजूद है, सारे जीव दिन-रात तेरा ही ध्यान धरते
हैं। हे मेरे पातशाह! सारे जीव तुझसे ही (मांगें) मांगते हैं। एक तू ही सब जीवों
को दातें दे रहा है।2। हे मेरे पातशाह! हरेक जीव तेरे हुक्म में है, तुझसे आकी कोई जीव हो ही नहीं सकता।
हे मेरे पातशाह! सारे जीव तेरे पैदा किए हुए हैं, ये
सारे तेरे में ही लीन हो जाते हैं।3। हे मेरे प्यारे पातशाह! तू सब जीवों की
आशाएं-उम्मीदें पूरी करता है सारे जीव तेरा ही ध्यान धरते हैं। हे नानक के पातशाह!
हे मेरे प्यारे! जैसे तुझे अच्छा लगता है, वैसे
मुझे (अपने चरणों में) रख। तू ही सदा कायम रहने वाला है।4।7।13।
वाहेगुरु
जी का खालसा वाहेगुरु जी की फतेह ॥
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