आज का फरमान (मुखवाक, हिंदी में )
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आज का फरमान (मुखवाक
)
{श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर , तिथि:- 26.03.2021,
दिन शुक्रवार ,पृष्ठ – 652 }
सलोकु मः ४ ॥
अंतरि अगिआनु भई मति मधिम सतिगुर की परतीति
नाही ॥ अंदरि कपटु सभु कपटो करि जाणै कपटे खपहि खपाही ॥ सतिगुर का भाणा चिति न आवै
आपणै सुआइ फिराही ॥ किरपा करे जे आपणी ता नानक सबदि समाही ॥१॥ मः ४ ॥ मनमुख माइआ मोहि विआपे दूजै भाइ मनूआ थिरु
नाहि ॥ अनदिनु जलत रहहि दिनु राती हउमै खपहि खपाहि ॥ अंतरि लोभु महा गुबारा तिन कै
निकटि न कोई जाहि ॥ ओइ आपि दुखी सुखु कबहू न पावहि जनमि मरहि मरि जाहि ॥ नानक बखसि
लए प्रभु साचा जि गुर चरनी चितु लाहि ॥२॥ पउड़ी ॥ संत भगत
परवाणु जो प्रभि भाइआ ॥ सेई बिचखण जंत जिनी हरि धिआइआ ॥ अम्रितु नामु निधानु भोजनु
खाइआ ॥ संत जना की धूरि मसतकि लाइआ ॥ नानक भए पुनीत हरि तीरथि नाइआ ॥२६॥
व्याख्या (अर्थ ) :-
सलोकु मः ४ ॥
(मनमुख के) हृदय में अज्ञान है, (उसकी) अक्ल होछी होती है और सतिगुरु पर उसे
सिदक नहीं होता; मन में धोखा
(होने के कारण संसार में भी) वह सारा धोखा ही धोखा बरतता समझता है। (मनमुख बंदे
खुद) दुखी होते हैं (तथा और लोगों को) दुखी करते रहते हैं; सतिगुरु का हुक्म उनके चिक्त में नहीं आता
(भाव, भाणा नहीं मानते) और अपनी गरज़ के पीछे भटकते
फिरते हैं; हे नानक! अगर
हरि अपनी मेहर करे, तो ही वह गुरु
के शब्द में लीन होते हैं।1। मः ४ ॥ माया के मोह
में ग्रसित मनमुखों का मन माया के प्यार में एक जगह नहीं टिकता; हर वक्त दिन रात (माया में) जलते रहते हैं, अहंकार में आप दुखी होते हैं, और लोगों को दुखी करते हैं, उनके अंदर लोभ-रूपी बड़ा अंधेरा होता है, कोई मनुष्य उनके नजदीक नहीं फटकता, वह अपने आप ही दुखी रहते हैं, कभी सुखी नहीं होते, सदा पैदा होने मरने के चक्कर में पड़े रहते
हैं। हे नानक! अगर वे गुरु के चरणों में चिक्त जोड़ें, तो सच्चा हरि उनको बख्श ले।2। पउड़ी ॥ जो मनुष्य प्रभु को प्यारे हैं, वे संत जन हैं, भक्त हैं, वही स्वीकार हैं। वही मनुष्य विलक्ष्ण हैं जो
हरि का नाम स्मरण करते हैं, आत्मिक जीवन
देने वाला नाम खाजाना रूपी भोजन करते हैं, और संतों की
चरण-धूल अपने माथे पर लगाते हैं। हे नानक! (ऐसे मनुष्य) हरि (के भजन रूप) तीर्थ
में नहाते हैं और पवित्र हो जाते हैं।26।
वाहिगुरु जी का खालसा वाहिगुरु जी
की फतेह
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