आज का फरमान (मुखवाक
)
{श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर , तिथि:- 17.03.2021,
दिन बुधवार, पृष्ठ – 621 }
सोरठि महला ५ घरु ३ चउपदे
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
मिलि पंचहु नही सहसा
चुकाइआ ॥ सिकदारहु नह पतीआइआ ॥ उमरावहु आगै झेरा ॥ मिलि राजन राम निबेरा ॥१॥ अब
ढूढन कतहु न जाई ॥ गोबिद भेटे गुर गोसाई ॥ रहाउ॥ आइआ प्रभ दरबारा ॥ ता सगली मिटी
पूकारा ॥ लबधि आपणी पाई ॥ ता कत आवै कत जाई ॥२॥ तह साच निआइ निबेरा ॥ ऊहा सम
ठाकुरु सम चेरा ॥ अंतरजामी जानै ॥ बिनु बोलत आपि पछानै ॥३॥ सरब थान को राजा ॥ तह
अनहद सबद अगाजा ॥ तिसु पहि किआ चतुराई ॥ मिलु नानक आपु गवाई ॥४॥१॥५१॥
व्याख्या (अर्थ ) :-
सोरठि महला ५ घरु ३ चउपदे
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
हे
भाई! नगर के पँचों को मिल के (कामादिक वैरियों पर पड़ रहा) सहम दूर नहीं किया जा
सकता। सिकदारों (आगुओं), लोगों
से भी तसल्ली नहीं मिल सकती (कि ये वैरी तंग नहीं करेंगे) सरकारी हाकिमों के आगे
भी ये झगड़ा (पेश करने से कुछ नहीं बनता) प्रभु पातशह को मिल के फैसला हो जाता है
(और, कामादिक वैरियों का डर खत्म हो जाता
है)।1। जब गोबिंद को, गुरु
को सृष्टि के पति को मिल पड़ें, तो
अब (कामादिक वैरियों को पड़ रहे सहम से बचने के लिए) किसी और जगह (आसरा) तलाशने की
जरूरत नहीं रह गई। रहाउ। हे भाई! जब मनुष्य प्रभु की हजूरी में पहुँचता है (चिक्त
जोड़ता है), तब इसकी (कामादिक
वैरियों के विरुद्ध) सारी शिकायत समाप्त हो जाती है। तब मनुष्य वह वस्तु हासिल कर
लेता है जो सदा इसकी अपनी ही बनी रहती है, तब
विकारों के चक्कर में पड़ के भटकने से बच जाता है।2। हे भाई! प्रभु की हजूरी में
सदा कायम रहने वाले न्याय के अनुसार (कामादिक आदि के साथ हो रही टक्कर का) फैसला
हो जाता है। उस दरगाह में (जुल्म करने वालों का कोई लिहाज नहीं किया जाता) मालिक
और नौकर को एक समान ही समझा जाता है। हरेक के दिल की जानने वाला प्रभु (हजूरी में
पहुँचे हुए सवालिए के दिल की) जानता है, (उसके)
बोले बिना वह प्रभु स्वयं (उसके दिल की पीड़ा को) समझ लेता है।3। हे भाई! प्रभु सब
जगहों का मालिक है, उससे
मिलाप-अवस्था में मनुष्य के अंदर प्रभु की महिमा की वाणी एक-रस पूरा प्रभाव डाल
लेती है (और, मनुष्य पर कामादिक वैरी
अपना जोर नहीं डाल सकते)। (पर, हे
भाई! उससे मिलने के लिए) उसके साथ कोई चालाकी नहीं की जा सकती। हे नानक! (कह: हे
भाई! अगर उससे मिलना है तो) स्वै भाव गवा के (उसको) मिल।4।1।51।
वाहेगुरु
जी का खालसा वाहेगुरु जी की फतेह ॥
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