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आज का फरमान (मुखवाक
)
{श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर , तिथि:- 18.03.2021,
दिन गुरूवार, पृष्ठ – 668 }
धनासरी महला ४ ॥
कलिजुग का धरमु कहहु तुम
भाई किव छूटह हम छुटकाकी ॥ हरि हरि जपु बेड़ी हरि तुलहा हरि जपिओ तरै तराकी ॥१॥ हरि
जी लाज रखहु हरि जन की ॥ हरि हरि जपनु जपावहु अपना हम मागी भगति इकाकी ॥ रहाउ॥ हरि
के सेवक से हरि पिआरे जिन जपिओ हरि बचनाकी ॥ लेखा चित्र गुपति जो लिखिआ सभ छूटी जम
की बाकी ॥२॥ हरि के संत जपिओ मनि हरि हरि लगि संगति साध जना की ॥ दिनीअरु सूरु
त्रिसना अगनि बुझानी सिव चरिओ चंदु चंदाकी ॥३॥ तुम वड पुरख वड अगम अगोचर तुम आपे
आपि अपाकी ॥ जन नानक कउ प्रभ किरपा कीजै करि दासनि दास दसाकी ॥४॥६॥
व्याख्या (अर्थ ) :-
धनासरी महला ४ ॥
हे भाई! मुझे वह
धर्म बता जिससे जगत के विकारों के झमेलों से बचा जा सके। मैं इन झमेलों से बचना
चाहता हूँ। बता: मैं कैसे बचूँ? (उत्तर-) परमात्मा के नाम का जाप बेड़ी है, नाम
ही तुलहा है। जिस मनुष्य ने हरि का नाम जपा वह तैराक बन के (संसार समुंदर से) पार
लांघ जाता है।1। हे प्रभु जी! (दुनिया के विकारों के झमेलों में से) अपने सेवक की
इज्जत बचा ले। हे हरि! मुझे अपना नाम जपने की सामर्थ्य दे। मैं (तुझसे) सिर्फ तेरी
भक्ति का दान माँग रहा हूँ। रहाउ। हे भाई! जिस मनुष्यों ने गुरु के वचन के द्वारा
परमात्मा का नाम जपा, वे सेवक परमात्मा को प्यारे लगते हैं।
चित्र-गुप्त ने जो भी उनके (कर्मों का) लेख लिख रखा था, धर्मराज
का वह सारा हिसाब ही समाप्त हो जाता है।2। हे भाई! जिस संत जनों ने साधु जनों की
संगति में बैठ के अपने मन में परमात्मा के नाम का जाप किया, उनके
अंदर कल्याण स्वरूप (परमात्मा प्रगट हो गया, मानो) ठंडक पहुँचाने वाला चाँद निकल आया
हो, जिसने
(उनके हृदय में से) तृष्णा की आग बुझा दी; (जिसने विकारों का) तपता सूरज (शांत कर
दिया)।3। हे प्रभु! तू सबसे बड़ा है, तू सर्व-व्यापक है; तू
अगम्य (पहुँच से परे) है; ज्ञान-इंद्रिय के द्वारा तुझ तक नहीं पहुँचा
जा सकता। तू (हर जगह) खुद ही खुद, स्वयं ही स्वयं है। हे प्रभु! अपने दास
नानक पर मेहर कर, और, अपने दासों के दासों का दास बना ले।4।6।
वाहेगुरु
जी का खालसा वाहेगुरु जी की फतेह ॥
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