आज का फरमान (मुखवाक
)
{श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर , तिथि:- 22-02-2021,
दिन सोमवार, पृष्ठ – 660 }
धनासरी महला १ घरु १ चउपदे
ੴ सति नामु करता पुरखु
निरभउ निरवैरु अकाल मूरति
अजूनी सैभं गुर प्रसादि ॥
जीउ डरतु है आपणा कै सिउ करी पुकार ॥ दूख विसारणु सेविआ सदा सदा दातारु ॥१॥
साहिबु मेरा नीत नवा सदा सदा दातारु ॥१॥ रहाउ ॥ अनदिनु साहिबु सेवीऐ अंति छडाए सोइ
॥ सुणि सुणि मेरी कामणी पारि उतारा होइ ॥२॥ दइआल तेरै नामि तरा ॥ सद कुरबाणै जाउ
॥१॥ रहाउ ॥ सरबं साचा एकु है दूजा नाही कोइ ॥ ता की सेवा सो करे जा कउ नदरि करे
॥३॥ तुधु बाझु पिआरे केव रहा ॥ सा वडिआई देहि जितु नामि तेरे लागि रहां ॥ दूजा
नाही कोइ जिसु आगै पिआरे जाइ कहा ॥१॥ रहाउ ॥ सेवी साहिबु आपणा अवरु न जाचंउ कोइ ॥
नानकु ता का दासु है बिंद बिंद चुख चुख होइ ॥४॥ साहिब तेरे नाम विटहु बिंद बिंद
चुख चुख होइ ॥१॥ रहाउ ॥४॥१॥
व्याख्या (अर्थ ) :-
धनासरी राग ,घर १ मे गुरू नानक देव जी की चार-बँदों वाली बाणी।
अकाल पुरख एक है, जिस का नाम सच्चा है जो सिृसटी का रचनहार है, जो सब में मौजूद है, डर से रहित है, वैर रहित है, जिस का सरूप काल से परे है, (मतलब जिस का शरीर नाश रहित है), जो जूनों में नही आता, जिस का प्रकाश अपने आप से हुआ है और जो सतिगुरू की कृपा से मिलता है।
जगत दुखों का समुँद्र है, इन दुखों को देख कर) मेरी जिंद काँप जाती है (परमात्मा के बिना अन्य कोई बचाने वाला नहीं दिखता) जिस के पास जा कर मैं अरजोई-अरदास करूँ। (इस लिए ओर आसरे छोड़ कर) मैं दुखों को नाश करने वाले प्रभू को ही सिमरता हूँ, वह सदा ही मेहर करने वाला है ॥१॥ (फिर वह) मेरा मालिक सदा ही बख्श़श़ें तो करता रहता है (परन्तु वह मेरी रोज की बेनती सुन के बख्श़श़ें करने में कभी परेशान नहीं होता) रोज ऐसे है जैसे पहली बार अपनी मेहर करने लगा है ॥१॥ रहाउ ॥ हे मेरी जिन्दे! हर रोज उस मालिक को याद करना चाहिए (दुखों से) आखिर वही बचाता है। हे मेरी जिन्दे! ध्यान से सुन (उस मालिक का सहारा लेने से ही दुखों से समुँद्र से) पार निकला जा सकता है ॥२॥ हे दयाल प्रभू! (मेहर कर, अपना नाम दे, जो कि) तेरे नाम से मैं (दुखों के इस समुँद्र को) पार कर सकूँ। मैं आपसे सदा सदके जाता हूँ ॥१॥ रहाउ ॥ सदा के लिए रहने वाला परमात्मा ही सब जगह हाज़िर है, उस के बिना ओर कोई नही। जिस जीव पर वह मेहर की निगाह करता है, वह उस का सिमरन करता है ॥३॥ हे प्यारे (प्रभू!) तेरी याद के बिना मे परेशान हो जाता हूँ। मुझे कोई वह बड़ी दात दें, जिस करके मैं तुम्हारे नाम मे जुड़ा रहा। हे प्यारे! तुम्हारे बिना ओर एेसा कोई नही है, जिस पास जा कर मैं यह अरजोई कर सका ॥१॥ रहाउ ॥ (दुखों के इस सागर से तरने के लिए) मैं अपने मालिक प्रभू को ही याद करता हूँ, किसी ओर से मैं यह माँग नही माँगता। नानक जी (अपने) उस (मालिक) का ही सेवक है, उस मालिक से ही खिन खिन सदके जाता है ॥४॥ हे मेरे मालिक! मैं तेरे नाम से खिन खिन कुर्बान जाता हूँ ॥१॥ रहाउ ॥४॥१॥
वाहेगुरु जी का
खालसा वाहेगुरु जी की फतेह ॥
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