आज का फरमान (मुखवाक, हिंदी में )
ਪੰਜਾਬੀ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿੱਚ ਹੁਕੱਮਨਾਮਾ ਪੜ੍ਹਨ ਲਈ ਇੱਥੇ ਕਲਿਕ ਕਰੋ
To read this page in English click here
आज का फरमान (मुखवाक
)
{श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर , तिथि:- 05.05.2021,
दिन बुधवार , पृष्ठ – 680 }
धनासरी महला ५ ॥
जतन करै मानुख
डहकावै ओहु अंतरजामी जानै ॥ पाप करे करि मूकरि पावै भेख करै निरबानै ॥१॥ जानत दूरि
तुमहि प्रभ नेरि ॥ उत ताकै उत ते उत पेखै आवै लोभी फेरि ॥ रहाउ॥ जब लगु तुटै नाही
मन भरमा तब लगु मुकतु न कोई ॥ कहु नानक दइआल सुआमी संतु भगतु जनु सोई ॥२॥५॥३६॥
व्याख्या (अर्थ):-
धनासरी महला ५ ॥
हे भाई! (लालची मनुष्य) अनेक प्रयत्न करता है, लोगों को धोखा देता है, विरक्तों वाले धार्मिक पहरावे
पहने रखता है, पाप करके (फिर उन पापों से)
मुकर भी जाता है, पर सबके दिल की जानने वाला वह
परमात्मा (सब कुछ) जानता है।1। हे प्रभु! तू (सब जीवों के) नजदीक बसता है, पर (लालची पाखण्डी मनुष्य) तुझे दूर (बसता) समझता है। लालची मनुष्य (लालच के)
चक्कर में फसा रहता है, (माया की खातिर) उधर देखता है, उधर से और उधर देखता है (उसका मन टिकता नहीं)। रहाउ। हे भाई! जब तक मनुष्य के
मन की (माया वाली) भटकना दूर नहीं होती, इस (लालच के पँजे से) आजाद
नहीं हो सकता। हे नानक! कह: (पहरावों से भक्त नहीं बन जाते) जिस मनुष्य पर
मालिक-प्रभु खुद दयावान होता है (और, उसको नाम की दाति देता है)
वही मनुष्य संत है भक्त है।2।5।36।
ਪੰਜਾਬੀ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿੱਚ ਹੁਕੱਮਨਾਮਾ ਪੜ੍ਹਨ ਲਈ ਇੱਥੇ ਕਲਿਕ ਕਰੋ
To read this page in English click here
वाहेगुरु जी का
खालसा
वाहेगुरु जी की
फतेह ॥
Post a Comment