आज का फरमान (मुखवाक, हिंदी में )
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आज का फरमान (मुखवाक )
{श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर , तिथि:- 17.05.2021,
दिन सोमवार , पृष्ठ – 619 }
सोरठि महला ५
॥
हमरी गणत न गणीआ काई अपणा बिरदु पछाणि ॥ हाथ
देइ राखे करि अपुने सदा सदा रंगु माणि ॥१॥ साचा साहिबु सद मिहरवाण ॥ बंधु पाइआ
मेरै सतिगुरि पूरै होई सरब कलिआण ॥ रहाउ॥ जीउ पाइ पिंडु जिनि साजिआ दिता पैनणु
खाणु ॥ अपणे दास की आपि पैज राखी नानक सद कुरबाणु ॥२॥१६॥४४॥
व्याख्या (अर्थ ) :-
सोरठि महला ५
॥
हे भाई! परमात्मा हम जीवों के किए बुरे कर्मों का कोई ख्याल नहीं करता। वह
अपने मूल (प्यार भरे) स्वभाव (बिरद) को याद रखता है (वह बल्कि, हमें गुरु से मिलवा के, हमें) अपने
बना के (अपना) हाथ दे के (हमें विकारों से) बचाता है। (जिस भाग्यशाली को गुरु मिल
जाता है, वह) सदा ही आत्मिक आनंद लेता है।1। हे भाई! सदा कायम रहने वाला मालिक प्रभु
सदा दयावान रहता है, (कुकर्मों की
ओर जा रहे लोगों को बचा के वह गुरु से मिलाता है। जिसे पूरा गुरु मिल गया, उसके विकारों के रास्ते में) मेरे पूरे गुरु ने रुकावट खड़ी कर दी (और, इस तरह उसके अंदर) सारे आत्मिक आनंद पैदा हो गए। रहाउ। हे भाई! जिस परमात्मा
ने प्राण डाल के (हमारा) शरीर पैदा किया है, जो (हर वक्त)
हमें खुराक और पोशाक दे रहा है, वह परमात्मा
(संसार समुंदर की विकार-लहरों से) अपने सेवक की इज्जत (गुरु को मिला के) बचाता है।
हे नानक! (कह: मैं उस परमात्मा से) सदा सदके जाता हूँ।2।16।44।
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वाहिगुरु जी
का खालसा
वाहिगुरु जी
की फतेह
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