आज का फरमान (मुखवाक, हिंदी में )
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आज का फरमान (मुखवाक
)
{श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर , तिथि:- 02.05.2021,
दिन रविवार, पृष्ठ – 663 }
धनासरी महला ३ घरु २ चउपदे
ੴ सतिगुर
प्रसादि ॥
इहु धनु अखुटु न निखुटै न जाइ ॥ पूरै सतिगुरि दीआ दिखाइ ॥
अपुने सतिगुर कउ सद बलि जाई ॥ गुर किरपा ते हरि मंनि वसाई ॥१॥ से धनवंत हरि नामि
लिव लाइ ॥ गुरि पूरै हरि धनु परगासिआ हरि किरपा ते वसै मनि आइ ॥ रहाउ॥ अवगुण काटि
गुण रिदै समाइ ॥ पूरे गुर कै सहजि सुभाइ ॥ पूरे गुर की साची बाणी ॥ सुख मन अंतरि
सहजि समाणी ॥२॥ एकु अचरजु जन देखहु भाई ॥ दुबिधा मारि हरि मंनि वसाई ॥ नामु अमोलकु
न पाइआ जाइ ॥ गुर परसादि वसै मनि आइ ॥३॥ सभ महि वसै प्रभु एको सोइ ॥ गुरमती घटि
परगटु होइ ॥ सहजे जिनि प्रभु जाणि पछाणिआ ॥ नानक नामु मिलै मनु मानिआ ॥४॥१॥
व्याख्या (अर्थ):-
धनासरी महला ३ घरु २ चउपदे
ੴ सतिगुर
प्रसादि ॥
हे भाई! ये नाम-खजाना कभी खत्म होने वाला नहीं, ना ही ये (खर्चने से) समाप्त होता है, ना ये गायब होता है। (इस धन की ये महानता मुझे) पूरे गुरु
ने दिखा दी है। (हे भाई!) मैं अपने गुरु से सदके जाता हूं, गुरु की कृपा से परमात्मा (का नाम-धन अपने) मन में बसाता
हूँ।1। (हे भाई! जिस मनुष्यों के हृदय में) पूरे गुरु ने परमात्मा के नाम का धन
प्रगट कर दिया, वह मनुष्य परमात्मा के नाम में तवज्जो जोड़ के (आत्मिक जीवन
के) शाह बन गए। हे भाई! ये नाम-धन परमात्मा की कृपा से मन में आ के बसता है। रहाउ।
(हे भाई! गुरु की शरण आए मनुष्य के) अवगुण दूर करके परमात्मा की महिमा (उसके) हृदय
में बसा देता है। (हे भाई!) पूरे गुरु की (उचारी हुई) सदा-स्थिर प्रभु की महिमा
वाली वाणी (मनुष्य के) मन में आत्मिक हुलारे पैदा करती है। (इस वाणी की इनायत से)
आत्मिक अडोलता में समाई हुई रहती है।2। हे भाई जनो! एक हैरान करने वाला तमाशा
देखो। (गुरु मनुष्य के अंदर से) तेर-मेर हटा के परमात्मा (का नाम उसके) मन में बसा
देता है। हे भाई! परमात्मा का नाम अमोहक है, (किसी भी दुनियावी कीमत से) नहीं
मिल सकता। (हाँ,) गुरु की कृपा से मन में आ बसता है।3। (हे भाई! चाहे)
परमात्मा खुद ही सबमें बसता है,
(पर) गुरु की मति पर चलने से ही (मनुष्य
के) हृदय में प्रकट होता है। हे नानक! आत्मिक अडोलता में टिक के जिस मनुष्य ने
प्रभु के साथ गहरी सांझ डाल के (उसको अपने अंदर बसता) पहचान लिया है, उसे परमात्मा का नाम (सदा के लिए) प्राप्त हो जाता है, उसका मन (परमात्मा की याद में) पतीजा रहता है।4।
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वाहेगुरु
जी का खालसा
वाहेगुरु
जी की फतेह ॥
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