आज का फरमान (मुखवाक, हिंदी में ), hukamnama from Golden Temple, 11.04.21

  आज का फरमान (मुखवाक, हिंदी में )

 ਪੰਜਾਬੀ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿੱਚ ਹੁਕੱਮਨਾਮਾ ਪੜ੍ਹਨ ਲਈ ਇੱਥੇ ਕਲਿਕ ਕਰੋ

To read this in English click here

आज का फरमान (मुखवाक )

{श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर , तिथि:- 11.04.2021,

दिन रविवार, पृष्ठ – 664 }

धनासरी महला ३ ॥

सदा धनु अंतरि नामु समाले ॥ जीअ जंत जिनहि प्रतिपाले ॥ मुकति पदारथु तिन कउ पाए ॥ हरि कै नामि रते लिव लाए ॥१॥ गुर सेवा ते हरि नामु धनु पावै ॥ अंतरि परगासु हरि नामु धिआवै ॥ रहाउ॥ इहु हरि रंगु गूड़ा धन पिर होइ ॥ सांति सीगारु रावे प्रभु सोइ ॥ हउमै विचि प्रभु कोइ न पाए ॥ मूलहु भुला जनमु गवाए ॥२॥ गुर ते साति सहज सुखु बाणी ॥ सेवा साची नामि समाणी ॥ सबदि मिलै प्रीतमु सदा धिआए ॥ साच नामि वडिआई पाए ॥३॥ आपे करता जुगि जुगि सोइ ॥ नदरि करे मेलावा होइ ॥ गुरबाणी ते हरि मंनि वसाए ॥ नानक साचि रते प्रभि आपि मिलाए ॥४॥३॥

 

व्याख्या (अर्थ ) :-

                    हे भाई! जिस परमात्मा ने सारे जीवों की पालना (करने की जिंमेवारी) ली हुई है, उस परमात्मा का नाम (ऐसा) धन (है जो) सदा साथ निभाता है, इसको अपने अंदर संभाल के रख। हे भाई! विकारों से खलासी कराने वाला नाम-धन उन मनुष्यों को मिलता है, जो तवज्जो जोड़ के परमात्मा के नाम (-रंग) में रंगे रहते हैं।1। हे भाई! गुरु की (बताई) सेवा करने से (मनुष्य) परमात्मा का नाम-धन हासिल कर लेता है। जो मनुष्य परमात्मा का नाम स्मरण करता है, उसके अंदर (आत्मिक जीवन की) सूझ पैदा हो जाती है। रहाउ। हे भाई! प्रभु-पति (के प्रेम) का ये गाढ़ा रंग उस जीव-स्त्री को चढ़ता है, जो (आत्मिक) शांति को (अपने जीवन का) गहना बनाती है, वह जीव-स्त्री उस प्रभु को हर वक्त हृदयस में बसाए रखती है। पर अहंकार में (रह के) कोई भी जीव परमात्मा से नहीं मिल सकता। अपने जीवन दाते को भूला हुआ मनुष्य अपना मानव जन्म व्यर्थ गवा जाता है।2। हे भाई! गुरु से (मिली) वाणी की इनायत से आत्मिक शांति प्राप्त होती है, आत्मिक अडोलता का आनंद मिलता है। (गुरु की बताई हुई) सेवा सदा साथ निभने वाली चीज है (इसकी इनायत से परमात्मा के) नाम में लीनता हो जाती है। जो मनुष्य गुरु के शब्द में जुड़ा रहता है, वह प्रीतम प्रभु को सदा स्मरण करता रहता है, सदा-स्थिर प्रभु के नाम में लीन हो के (परलोक में) इज्जत कमाता है।3। जो कर्तार हरेक युग में खुद ही (मौजूद चला आ रहा) है, वह (जिस मनुष्य पर मेहर की) निगाह करता है (उस मनुष्य का उससे) मिलाप हो जाता है। वह मनुष्य गुरु की वाणी की इनायत से परमात्मा को अपने मन में बसा लेता है। हे नानक! जिस मनुष्यों को प्रभु ने खुद (अपने चरणों में) मिलाया है, वह उस सदा-स्थिर (के प्रेम रंग) में रंगे रहते हैं।4।3।

ਪੰਜਾਬੀ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿੱਚ ਹੁਕੱਮਨਾਮਾ ਪੜ੍ਹਨ ਲਈ ਇੱਥੇ ਕਲਿਕ ਕਰੋ

To read this in English click here

 

वाहेगुरु जी का खालसा

वाहेगुरु जी की फतेह

 




Post a Comment

Previous Post Next Post