आज का फरमान (मुखवाक, हिंदी में )
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आज का फरमान (मुखवाक
)
{श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर , तिथि:- 17.04.2021,
दिन शनिवार , पृष्ठ – 626 }
सोरठि महला ५ ॥
तापु गवाइआ गुरि पूरे ॥ वाजे अनहद तूरे ॥
सरब कलिआण प्रभि कीने ॥ करि किरपा आपि दीने ॥१॥ बेदन सतिगुरि आपि गवाई ॥ सिख संत
सभि सरसे होए हरि हरि नामु धिआई ॥ रहाउ॥ जो मंगहि सो लेवहि ॥ प्रभ अपणिआ संता
देवहि ॥ हरि गोविदु प्रभि राखिआ ॥ जन नानक साचु सुभाखिआ ॥२॥६॥७०॥
व्याख्या (अर्थ ):-
पूरे गुरु ने
(हरि नाम की दवा दे के जिस मनुष्य के अंदर से) ताप दूर कर दिया, (उसके अंदर आत्मिक आनंद के, मानो) एक-रस बाजे बजने लग
पड़े। प्रभु ने कृपा करके खुद ही वह सारे सुख आनंद बख्श दिए।1। हे भाई! सारे सिख
संत परमात्मा का नाम स्मरण कर-कर के आनंद भरपूर हुए रहते हैं। (जिसने भी परमात्मा
का नाम स्मरण किया) गुरु ने खुद (उसकी हरेक) पीड़ा दूर कर दी। रहाउ। हे प्रभु! (तेरे
दर से तेरे संत जन) जो कुछ माँगते हैं, वह हासिल कर लेते हैं। तू
अपने संतों को (खुद सब कुछ) देता है। (हे भाई! बालक) हरि गोबिंद को (भी) प्रभु ने
(खुद) बचाया है (किसी देवी आदि ने नहीं)। हे दास नानक! (कह:) मैं तो सदा स्थिर
रहने वाले प्रभु का नाम ही उचारता हूँ।2।6।70।
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वाहेगुरु जी का
खालसा
वाहेगुरु जी की
फतेह ॥
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