आज का फरमान (मुखवाक, हिंदी में ), Golden Temple, 24.03.21

  आज का फरमान (मुखवाक, हिंदी में )

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आज का फरमान (मुखवाक )

{श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर , तिथि:- 24.03.2021,

दिन बुधवार ,पृष्ठ – 575 }

 

वडहंसु महला ४ घोड़ीआ

सतिगुर प्रसादि ॥

देह तेजणि जी रामि उपाईआ राम ॥ धंनु माणस जनमु पुंनि पाईआ राम ॥ माणस जनमु वड पुंने पाइआ देह सु कंचन चंगड़ीआ ॥ गुरमुखि रंगु चलूला पावै हरि हरि हरि नव रंगड़ीआ ॥ एह देह सु बांकी जितु हरि जापी हरि हरि नामि सुहावीआ ॥ वडभागी पाई नामु सखाई जन नानक रामि उपाईआ ॥१॥ देह पावउ जीनु बुझि चंगा राम ॥ चड़ि लंघा जी बिखमु भुइअंगा राम ॥ बिखमु भुइअंगा अनत तरंगा गुरमुखि पारि लंघाए ॥ हरि बोहिथि चड़ि वडभागी लंघै गुरु खेवटु सबदि तराए ॥ अनदिनु हरि रंगि हरि गुण गावै हरि रंगी हरि रंगा ॥ जन नानक निरबाण पदु पाइआ हरि उतमु हरि पदु चंगा ॥२॥ कड़ीआलु मुखे गुरि गिआनु द्रिड़ाइआ राम ॥ तनि प्रेमु हरि चाबकु लाइआ राम ॥ तनि प्रेमु हरि हरि लाइ चाबकु मनु जिणै गुरमुखि जीतिआ ॥ अघड़ो घड़ावै सबदु पावै अपिउ हरि रसु पीतिआ ॥ सुणि स्रवण बाणी गुरि वखाणी हरि रंगु तुरी चड़ाइआ ॥ महा मारगु पंथु बिखड़ा जन नानक पारि लंघाइआ ॥३॥ घोड़ी तेजणि देह रामि उपाईआ राम ॥ जितु हरि प्रभु जापै सा धनु धंनु तुखाईआ राम ॥ जितु हरि प्रभु जापै सा धंनु साबासै धुरि पाइआ किरतु जुड़ंदा ॥ चड़ि देहड़ि घोड़ी बिखमु लघाए मिलु गुरमुखि परमानंदा ॥ हरि हरि काजु रचाइआ पूरै मिलि संत जना जंञ आई ॥ जन नानक हरि वरु पाइआ मंगलु मिलि संत जना वाधाई ॥४॥१॥५॥

 

व्याख्या (अर्थ ) :- 

वडहंसु महला ४ घोड़ीआ

सतिगुर प्रसादि ॥

         हे भाई! (मनुष्य की) ये काया (जैसे) घोड़ी है (इसको) परमात्मा ने पैदा किया है। मानव जन्म भाग्यशाली है (जिसमें ये काया प्राप्त होती है) सौभाग्य से ही (जीव ने ये काया) पाई है। हे भाई! मानव जन्म बड़ी किस्मत से ही मिलता है। पर उसी मनुष्य की काया सोने जैसी व सुंदर है जो गुरु की शरण पड़ कर हरि-नाम का गाढ़ा रंग हासिल करता है, उस मनुष्य की काया हरि-नाम के नए रंग से रंगी जाती है। हे भाई! ये काया सुंदर है क्योंकि इस काया से मैं परमात्मा का नाम जप सकता हूँ, हरि नाम की इनायत से यह काया सोहणी बन जाती है। हे भाई! उस अति भाग्यशाली मनुष्य ने ही यह काया (असल में) प्राप्त की समझ, परमात्मा का नाम जिस मनुष्य का मित्र बन जाता है। हे दास नानक! (नाम स्मरण करने के लिए ही ये काया) परमात्मा ने पैदा की है।1। हे भाई! परमात्मा के गुणों को विचार के मैं (अपनी शरीर घोड़ी पर, महिमा की) काठी डालता हूँ, (उस काठी वाली घोड़ी पर) चढ़ के (काया को वश में कर के) मैं इस मुश्किल (से तैरे जाने वाले) संसार समुंदर से पार लांघता हूँ। (हे भाई! कोई विरला) गुरु के सन्मुख रहने वाला मनुष्य (ही) इस मुश्किल संसार-समुंदर से पार लांघता है (क्योंकि इसमें विकारों की) बेअंत लहरें पड़ रही हैं। कोई दुर्लभ अति भाग्यशाली मनुष्य हरि-नाम के जहाज में चढ़ के पार लांघता है, गुरु-मल्लाह अपने शब्द के साथ जोड़ के पार लंघा लेता है। हे नानक! जो मनुष्य हर वक्त परमात्मा के प्रेम रंग में (टिक के) परमात्मा की महिमा के गीत गाता रहता है, वह हरि नाम रंग में रंगा जाता है, वह मनुष्य वह ऊँचा और स्वच्छ आत्मिक स्तर हासिल कर लेता है जहाँ वासना छू नहीं सकती।2। जिस मनुष्य के हृदय में गुरु ने आत्मिक जीवन की समझ पक्की कर दी, उसने ये सूझ (अपनी काया घोड़ी के) मुंह में (जैसे) लगाम दे दी है। उस मनुष्य के हृदय में परमात्मा का प्यार पैदा होता है, ये प्यार वह मनुष्य अपनी काया-घोड़ी को (जैसे) चाबुक मारता रहता है। हृदय में पैदा हरि नाम का प्रेम में लीन वह मनुष्य अपनी काया घोड़ी को चाबुक मारता रहता है, और अपने मन को वश में किए रखता है। पर, ये मन गुरु की शरण पड़ के ही जीता जा सकता है। वह मनुष्य गुरु का शब्द प्राप्त करता है, आत्मिक जीवन देने वाला हरि-नाम-रस पीता रहता है, और (जत, धैर्य आदि की कुठाली में) अल्हड़ मन को घड़ लेता है (परिपक्व बना लेता है)। गुरु की जो वाणी उचारी हुई है इस को अपने कानों से सुन के (भाव, ध्यान से सुन के वह मनुष्य अपने अंदर) परमात्मा का प्यार पैदा करता है, और इस तरह काया-घोड़ी पर सवार होता है (काया को वश में करता है)। हे दास नानक! (ये मनुष्य जीवन) बड़ा मुश्किल रास्ता है, (पर, गुरु की शरण पड़े मनुष्य को) पार लंघा लेता है।3। हे भाई! ये मनुष्य शरीर रूपी घोड़ी परमात्मा ने पैदा की है (कि इस घोड़ी पर चढ़ कर जीव जीवन-यात्रा को सफलता से तय करे, सो) जिस (शरीर-घोड़ी) के द्वारा मनुष्य परमात्मा का नाम जपता है, वह धन्य है, उसे शाबाशी मिलती है, (इससे) पिछले किए कर्मों के संस्कारों का समूह सामने आ जाता है। हे भाई! इस सुंदर काया-घोड़ी पर चढ़, (ये घोड़ी) मुश्किल संसार-समुंदर से पार लंघा लेती है, (इसके द्वारा) गुरु की शरण पड़ कर परम आनंद के मालिक परमात्मा को मिल। पूरन परमात्मा ने जिस जीव-स्त्री का विवाह रच दिया (जिस जीव-वधू को अपने साथ मिलाने का अवसर बना दिया), सत्संगियों के साथ मिल के (मानो, उसकी) बारात आ गई। हे दास नानक! संत जनों से मिल के उस जीव-स्त्री ने प्रभु-पति (का मिलाप) हासिल कर लिया, उसने आत्मिक आनंद पा लिया, उसके अंदर आत्मिक मंगल के गीत (शादी के मंगलमयी गीत) बज पड़े।4।1।5।

 

 

वाहिगुरु जी का खालसा  वाहिगुरु जी की फतेह


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