आज का फरमान (मुखवाक
)
{श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर , तिथि:- 09.03.2021,
दिन मंगलवार, पृष्ठ – 617 }
सोरठि महला ५ घरु २ दुपदे
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
सगल बनसपति महि बैसंतरु सगल दूध महि घीआ ॥ ऊच नीच महि
जोति समाणी घटि घटि माधउ जीआ ॥१॥ संतहु घटि घटि रहिआ समाहिओ ॥ पूरन पूरि रहिओ सरब
महि जलि थलि रमईआ आहिओ ॥१॥ रहाउ॥ गुण निधान नानकु जसु गावै सतिगुरि भरमु चुकाइओ ॥
सरब निवासी सदा अलेपा सभ महि रहिआ समाइओ ॥२॥१॥२९॥
व्याख्या (अर्थ ) :-
सोरठि महला ५ घरु २
दुपदे
ੴ सतिगुर
प्रसादि ॥
हे भाई!
जैसे सब पौधों में आग (गुप्त रूप में मौजूद) है, जैसे
हरेक किस्म के दूध में घी (मक्खन) गुप्त मौजूद है, वैसे
अच्छे-बुरे सब जीवों में प्रभु की ज्योति समाई हुई है, परमात्मा हरेक शरीर में है, सब जीवों में है।1। हे संत जनो!
परमात्मा हरेक शरीर में मौजूद है। वह पूरी तरह सारे शरीरों में व्यापक है, वह सुंदर राम पानी में है, धरती में है।1। रहाउ। हे भाई! नानक
(उस) गुणों के खजाने परमात्मा की महिमा के गीत गाता है। गुरु ने (नानक का) भुलेखा
दूर कर दिया है (तभी तो नानक को यकीन है कि) परमात्मा सब जीवों में बसता है (फिर
भी) सदा (माया के मोह से) निर्लिप है, सब
जीवों में समा रहा है।2।1।29।
वाहेगुरु
जी का खालसा वाहेगुरु जी की फतेह ॥
Post a Comment