आज का फरमान (मुखवाक, हिंदी में )
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{श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर , तिथि: - 19.03.2021,
दिन शुक्रवार , पृष्ठ – 694 }
धनासरी भगत रवि दास जी
की
ੴ सतिगुर परसाद ॥
हम सरि दीनु दइआल न तुम सरि अब पतिआरू
किया कीजे ॥ बचनी तोर मोर मनु माने जन कऊ पूरण दीजे ॥१॥ हउ बलि बलि जाउ रमईआ कारने
॥ कारन कवन अबोल ॥ रहाउ ॥ बहुत जनम बिछुरे थे माधउ इहु जनमु तुम्हारे लेखे ॥ कहि
रविदास आस लगि जीवउ चिर भइओ दरसनु देखे ॥२॥१॥
व्याख्या - (हे माधो!) मेरे जैसा और कोई निमाणा नहीं, और तेरे जैसा और कोई दया
करने वाला नहीं, (मेरी कंगालता का) अब और परतावा करने की जरूरत नहीं। (हे सुंदर राम!) मुझ दास
को ये पूर्ण सिदक बख्श कि मेरा मन तेरी महिमा की बातों में पसीज जाया करे।1। हे
सुंदर राम! मैं तुझसे सदा सदके हूँ, क्या बात है कि तू मेरे से बात नहीं करता?। रहाउ। रविदास कहता है: हे
माधो! कई जन्मों से मैं तुझसे विछुड़ता आ रहा हूँ (मेहर कर, मेरा) ये जन्म तेरी याद में
बीते; तेरा दीदार किए काफी समय हो
गया है, (दर्शन की) आस
में ही मैं जीता हूँ।2।1।
वाहेगुरु जी का खालसा वाहेगुरु जी की फतेह ॥
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