आज का फरमान (मुखवाक, हिंदी में )
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आज का फरमान (मुखवाक
)
{श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर , तिथि:- 30.03.2021,
दिन मंगलवार, पृष्ठ – 560 }
वडहंसु महला ३ ॥
रसना हरि सादि लगी सहजि सुभाइ ॥ मनु त्रिपतिआ हरि नामु धिआइ
॥१॥ सदा सुखु साचै सबदि वीचारी ॥ आपणे सतगुर विटहु सदा बलिहारी ॥१॥ रहाउ॥ अखी
संतोखीआ एक लिव लाइ ॥ मनु संतोखिआ दूजा भाउ गवाइ ॥२॥ देह सरीरि सुखु होवै सबदि हरि
नाइ ॥ नामु परमलु हिरदै रहिआ समाइ ॥३॥ नानक मसतकि जिसु वडभागु ॥ गुर की बाणी सहज
बैरागु ॥४॥७॥
व्याख्या (अर्थ ) :-
वडहंसु महला ३ ॥
(हे भाई! गुरु की
शरण पड़ के जिस मनुष्य की) जीभ परमात्मा के नाम के स्वाद में लगती है, वह मनुष्य आत्मिक अडोलता में टिक जाता है, प्रभु-प्रेम में
जुड़ जाता है। परमात्मा का नाम स्मरण करके उसका मन (माया की तृष्णा की ओर से) तृप्त
हो जाता है।1। मैं अपने गुरु से सदा कुर्बान जाता हूँ, जिसके सदा स्थिर प्रभु की महिमा में जुड़ने से विचारवान हो जाते हैं, और सदैव आत्मिक आनंद मिला रहता है।1। रहाउ। (हे भाई!
गुरु की शरण की इनायत से) एक परमात्मा में तवज्जो जोड़ के मनुष्य की आँखें (पराए
रूप से) तृप्त हो जाती हैं, (अंदर से) माया का
प्यार दूर करके मनुष्य का मन (तृष्णा की ओर से) संतुष्ट हो जाता है।2। (हे भाई! गुरु
के) शब्द की इनायत से परमात्मा के नाम में जुड़ने से शरीर में आनंद पैदा होता है, (गुरु की मेहर से) आत्मिक जीवन की सुगंधि देने वाला हरि-नाम
मनुष्य के हृदय में सदा टिका रहता है।3। हे नानक! जिस मनुष्य के माथे पर उच्च भाग्य
जागते हैं वह मनुष्य गुरु की वाणी में जुड़ता है (जिसकी इनायत से उसके अंदर) आत्मिक
अडोलता पैदा करने वाला वैराग उपजता है।4।7।
वाहेगुरु जी का
खालसा
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