आज का फरमान (मुखवाक, हिंदी में ), from Golden Temple, 22.03.21

 आज का फरमान (मुखवाक, हिंदी में )

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आज का फरमान (मुखवाक )

{श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर , तिथि:- 22.03.2021,

दिन सोमवार ,पृष्ठ – 725 }


तिलंग महला ४ ॥


हरि कीआ कथा कहाणीआ गुरि मीति सुणाईआ ॥ बलिहारी गुर आपणे गुर कउ बलि जाईआ ॥१॥ आइ मिलु गुरसिख आइ मिलु तू मेरे गुरू के पिआरे ॥ रहाउ॥ हरि के गुण हरि भावदे से गुरू ते पाए ॥ जिन गुर का भाणा मंनिआ तिन घुमि घुमि जाए ॥२॥ जिन सतिगुरु पिआरा देखिआ तिन कउ हउ वारी ॥ जिन गुर की कीती चाकरी तिन सद बलिहारी ॥३॥ हरि हरि तेरा नामु है दुख मेटणहारा ॥ गुर सेवा ते पाईऐ गुरमुखि निसतारा ॥४॥ जो हरि नामु धिआइदे ते जन परवाना ॥ तिन विटहु नानकु वारिआ सदा सदा कुरबाना ॥५॥ सा हरि तेरी उसतति है जो हरि प्रभ भावै ॥ जो गुरमुखि पिआरा सेवदे तिन हरि फलु पावै ॥६॥ जिना हरि सेती पिरहड़ी तिना जीअ प्रभ नाले ॥ ओइ जपि जपि पिआरा जीवदे हरि नामु समाले ॥७॥ जिन गुरमुखि पिआरा सेविआ तिन कउ घुमि जाइआ ॥ ओइ आपि छुटे परवार सिउ सभु जगतु छडाइआ ॥८॥ गुरि पिआरै हरि सेविआ गुरु धंनु गुरु धंनो ॥ गुरि हरि मारगु दसिआ गुर पुंनु वड पुंनो ॥९॥ जो गुरसिख गुरु सेवदे से पुंन पराणी ॥ जनु नानकु तिन कउ वारिआ सदा सदा कुरबाणी ॥१०॥ गुरमुखि सखी सहेलीआ से आपि हरि भाईआ ॥ हरि दरगह पैनाईआ हरि आपि गलि लाईआ ॥११॥ जो गुरमुखि नामु धिआइदे तिन दरसनु दीजै ॥ हम तिन के चरण पखालदे धूड़ि घोलि घोलि पीजै ॥१२॥ पान सुपारी खातीआ मुखि बीड़ीआ लाईआ ॥ हरि हरि कदे न चेतिओ जमि पकड़ि चलाईआ ॥१३॥ जिन हरि नामा हरि चेतिआ हिरदै उरि धारे ॥ तिन जमु नेड़ि न आवई गुरसिख गुर पिआरे ॥१४॥ हरि का नामु निधानु है कोई गुरमुखि जाणै ॥ नानक जिन सतिगुरु भेटिआ रंगि रलीआ माणै ॥१५॥ सतिगुरु दाता आखीऐ तुसि करे पसाओ ॥ हउ गुर विटहु सद वारिआ जिनि दितड़ा नाओ ॥१६॥ सो धंनु गुरू साबासि है हरि देइ सनेहा ॥ हउ वेखि वेखि गुरू विगसिआ गुर सतिगुर देहा ॥१७॥ गुर रसना अम्रितु बोलदी हरि नामि सुहावी ॥ जिन सुणि सिखा गुरु मंनिआ तिना भुख सभ जावी ॥१८॥ हरि का मारगु आखीऐ कहु कितु बिधि जाईऐ ॥ हरि हरि तेरा नामु है हरि खरचु लै जाईऐ ॥१९॥ जिन गुरमुखि हरि आराधिआ से साह वड दाणे ॥ हउ सतिगुर कउ सद वारिआ गुर बचनि समाणे ॥२०॥ तू ठाकुरु तू साहिबो तूहै मेरा मीरा ॥ तुधु भावै तेरी बंदगी तू गुणी गहीरा ॥२१॥ आपे हरि इक रंगु है आपे बहु रंगी ॥ जो तिसु भावै नानका साई गल चंगी ॥२२॥२॥

 

व्याख्या (अर्थ ) :- 

 

                          

 तिलंग महला ४ ॥

 

                        हे गुरसिख! मित्र गुरु ने (मुझे) परमात्मा की महिमा की बातें सुनाई हैं। मैं अपने गुरु से बार-बार सदके कुर्बान जाता हूँ।1। हे मेरे गुरु के प्यारे सिख! मुझे आ के मिल, मुझे आ के मिल। रहाउ। हे गुरसिख! परमात्मा के गुण (गाने) परमात्मा को पसंद आते हैं। मैंने वह गुण (गाने) गुरु से सीखे हैं। मैं उन (भाग्यशालियों से) बार-बार कुर्बान जाता हूँ, जिन्होंने गुरु के हुक्म को (मीठा समझ के) माना है।2। हे गुरसिख! मैं उनके सदके जाता हूँ, जिस प्यारों ने गुरु का दर्शन किया है, जिन्होंने गुरु की (बताई) सेवा की है।3। हे हरि! तेरा नाम सारे दुख दूर करने के समर्थ है, (पर यह नाम) गुरु की शरण पड़ने से ही मिलता है। गुरु के सन्मुख रहने से ही (संसार-समुंदर से) पार लांघा जा सकता है।4। हे गुरसिख! जो मनुष्य परमात्मा का नाम स्मरण करते हैं, वे मनुष्य (परमात्मा की हजूरी में) स्वीकार हो जाते हैं। नानक उन मनुष्यों से कुर्बान जाता है, सदा सदके जाता है।5।हे हरि! हे प्रभु! वही महिमा तेरी महिमा कही जा सकती है जो तुझे पसंद आ जाती है। (हे भाई!) जो मनुष्य गुरु के सन्मुख हो के प्यारे प्रभु की सेवा-भक्ति करते हैं, उनको प्रभु (सुख-) फल देता है।6। हे भाई! जिस लोगों का परमात्मा से प्यार पड़ जाता है, उनके दिल (सदा) प्रभु (के चरणों के) साथ ही (जुड़े रहते) हैं। वह मनुष्य प्यारे प्रभु को स्मरण कर-कर के, प्रभु का नाम हृदय में संभाल के आत्मिक जीवन हासिल करते हैं।7। हे भाई! मैं उन मनुष्यों से सदके जाता हूँ, जिन्होंने गुरु की शरण पड़ कर प्यारे प्रभु की सेवा भक्ति की है। वह मनुष्य स्वयं (अपने) परिवार समेत (संसार-समुंदर के विकारों से) बच गए, उन्होंने सारा संसार भी बचा लिया है।8। हे भाई! गुरु सराहनीय है, गुरु सराहना के योग्य है, प्यारे गुरु के द्वारा (ही) मैंने परमात्मा की सेवा-भक्ति आरम्भ की है। मुझे गुरु ने (ही) परमात्मा (के मिलाप) का रास्ता बताया है। गुरु का (मेरे पर ये) उपकार है, बड़ा उपकार है।9। हे भाई! गुरु के जो सिख गुरु की (बताई) सेवा करते हैं, वे भाग्यशाली हो गए हैं। दास नानक उनसे सदके जाता है, सदा ही कुर्बान जाता है।10। हे भाई! गुरु की शरण पड़ कर (परस्पर प्रेम से रहने वाली सत्संगी) सहेलियाँ (ऐसी हो जाती हैं कि) वह अपने आप प्रभु को प्यारी लगने लगती हैं। परमात्मा की हजूरी में उन्हें आदर मिलता है, परमात्मा ने उन्हें स्वयं अपने गले से (सदा के लिए) लगा लिया है।11। हे प्रभु! जो मनुष्य गुरु की शरण पड़ कर (तेरा) नाम स्मरण करते हैं, उनके दर्शन मुझे बख्श। मैं उनके चरण धोता रहूँ, और, उनके चरणों की धूल घोल-घोल के पीता रहूँ।12। हे भाई! जो जीव-सि्त्रयाँ पान-सुपारी आदि खाती रहती हैं, मुँह में पान चबाती रहती हैं (भाव, सदा पदार्थों के भोग में मस्त हैं), और जिन्होंने परमात्मा का नाम कभी नहीं स्मरण किया, उनको मौत (के चक्कर) ने पकड़ के (सदा के लिए) आगे लगा लिया (अर्थात, वे चौरासी के चक्करों में पड़ गई) ।13। हे भाई! जिन्होंने अपने मन में हृदय में टिका के परमात्मा का नाम स्मरण किया, उन गुरु के प्यारे गुरसिखों के नजदीक मौत (का डर) नहीं आता।14। हे भाई! परमात्मा का नाम खजाना है, कोई विरला मनुष्य गुरु की शरण पड़ कर (नाम से) सांझ डालता है। हे नानक! (कह:) जिस मनुष्यों को गुरु मिल जाता है, वह (हरेक मनुष्य) हरि-नाम के प्रेम में जुड़ के आत्मिक आनंद का सुख लेता है।15। हे भाई! गुरु को (ही नाम की दाति) देने वाला कहना चाहिए। गुरु प्रसन्न हो के (नाम देने की) कृपा करता है। मैं (तो) सदा गुरु से (ही) कुर्बान जाता हूँ, जिसने (मुझे) परमात्मा का नाम दिया है।16। हे भाई! वह गुरु सराहनीय है, उस गुरु की प्रशन्सा करनी चाहिए, जो परमात्मा का नाम जपने का उपदेश देता है। मैं (तो) गुरु को देख-देख के गुरु का (सुंदर) शरीर देख के खिल रहा हूँ।17। हे भाई! गुरु की जीभ आत्मिक जीवन देने वाली हरि-नाम उचारती है, हरि-नाम (उच्चारण के कारण) सुंदर लगती है। जिस सिखों ने (गुरु का उपदेश) सुन के गुरु पर यकीन किया है, उनकी (माया की) सारी भूख दूर हो गई है।18। हे भाई! (हरि-नाम जपना ही) परमात्मा (के मिलाप) का रास्ता कहा जाता है। हे भाई! बताओ, किस ढंग से (इस रास्ते पर) चला जा सकता है? हे प्रभु! तेरा नाम ही (रास्ते का) खर्च है, ये खर्च ही पल्ले बाँध के (इस रास्ते पर) चलना चाहिए।19। हे भाई! जिस मनुष्यों ने गुरु की शरण पड़ कर परमात्मा का नाम जपा है वे बड़े समझदार शाह बन गए हैं। मैं सदा गुरु से कुर्बान जाता हूँ, गुरु के वचन के द्वारा (परमात्मा के नाम में) लीन हुआ जा सकता है।20। हे प्रभु! तू मेरा मालिक है। तू मेरा साहिब है, तू ही मेरा पातशाह है। अगर तू पसंद आए, तो ही तेरी भक्ति की जा सकती है। तू गुणों का खजाना है, तू गहरे जिगरे वाला है।21। हे नानक! (कह: हे भाई!) परमात्मा आप ही (निर्गुण स्वरूप में) एक मात्र हस्ती है, और, आप ही (सर्गुण स्वरूप में) अनेक रूपों वाला है। जो बात उसे अच्छी लगती है, वही बात जीवों के भले के लिए होती है।22।2।

 

वाहिगुरु जी का खालसा  वाहिगुरु जी की फतेह


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