आज का फरमान (मुखवाक
)
{श्री दरबार साहिब, श्री अमृतसर , तिथि:- 27.02.2021,
दिन शनिवार ,पृष्ठ – 742 }
सूही महला ५ ॥
अनिक बींग दास के परहरिआ ॥ करि किरपा प्रभि अपना
करिआ ॥१॥ तुमहि छडाइ लीओ जनु अपना ॥ उरझि परिओ जालु जगु सुपना ॥१॥ रहाउ॥ परबत दोख
महा बिकराला ॥ खिन महि दूरि कीए दइआला ॥२॥ सोग रोग बिपति अति भारी ॥ दूरि भई जपि
नामु मुरारी ॥३॥ द्रिसटि धारि लीनो लड़ि लाइ ॥ हरि चरण गहे नानक सरणाइ ॥४॥२२॥२८॥
व्याख्या (अर्थ ) :-
सूही
महला ५ ॥
हे भाई! प्रभु ने अपने सेवक के अनेक टेढ़-मेढ़ (छल कपट) दूर कर दिए, और कृपा करके उसको अपना बना लिया है।1। हे प्रभु! सपने जैसे जगत (के मोह) जाल (ने तेरे सेवक को चारों तरफ से) उलझा लिया है, पर तूने अपने सेवक को (उसमें से) स्वयं निकाल लिया।1। रहाउ। हे भाई! (शरण आए मनुष्य के) पहाड़ों जितने बड़े और भयानक ऐब दीनों पर दया करने वाले परमात्मा ने एक छिन में दूर कर दिए।2। हे भाई! (सेवक के) अनेक ग़म और रोग बड़ी भारी मुसीबतें परमात्मा का नाम जपके दूर हो गई।3। हे नानक! (कह: हे भाई!) जिस मनुष्य ने परमात्मा के चरण पकड़ लिए, जो मनुष्य प्रभु की शरण आ पड़ा, परमात्मा ने मेहर की निगाह करके उसको अपने साथ लगा लिया।4।22।28।
वाहिगुरु जी का खालसा वाहिगुरु जी की फतेह
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